न यात्री शेड, न किराया निर्धारण, फर्जी एजेंटों और मनमानी भाड़ा वसूली से परेशान हैं लोगप्रतिनिधि, दरियापुर. जिले का सबसे बड़ा प्रखंड होने और अधिक आबादी के बावजूद डेरनी प्रखंड में यात्री सुविधाओं का घोर अभाव है. न तो कहीं वाहन स्टैंड है और न ही बस पड़ाव, जहां से यात्री आराम से ऑटो या बस पकड़ सकें. लोगों को सड़कों पर खड़े होकर बस या ऑटो का इंतजार करना पड़ता है, जिससे दुर्घटना की आशंका हमेशा बनी रहती है. खासकर महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग सड़क किनारे घंटों खड़े रहते हैं. स्थिति यह है कि न तो सार्वजनिक शौचालय की व्यवस्था है और न ही पानी पीने के लिए कोई नलकूप या चापाकल. सरकार भले ही विकास के दावे कर रही हो, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में यात्री आज भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं.
यात्री शेड हैं, लेकिन उसका हाल बेहाल
प्रखंड मुख्यालय में बने तीन यात्री शेड में से एक पर दबंगों ने कब्जा कर लिया है. दूसरे शेड में गंदगी का अंबार लगा है, जिससे कोई वहां बैठने को तैयार नहीं है. तीसरा यात्री शेड हाल ही में बना है, लेकिन निर्माण में लापरवाही के कारण जल्द ही उसके धराशायी होने की आशंका है. वहीं दरियापुर, बेला, डेरनी और अन्य प्रमुख स्थानों पर तो एक भी यात्री शेड नहीं हैं. स्थानीय प्रशासन की निष्क्रियता के कारण इन शेडों की साफ-सफाई और सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं है. नये बने यात्री शेडों में अक्सर आवारा तत्वों का जमावड़ा रहता है, जिससे आम यात्रियों को परेशानी होती है.
किराया निर्धारण नहीं, चालक वसूलते हैं मनमाना भाड़ा
डेरनी प्रखंड में यात्रियों के लिए किराये का कोई निर्धारण नहीं है. वाहन मालिक और चालक अपने मनमर्जी से किराया वसूलते हैं. यात्रियों को यह तक नहीं पता होता कि उन्हें अपने गंतव्य तक जाने के लिए कितना भाड़ा देना होगा. डेरनी से पटना जाने वाले बसों में कभी ₹120, तो कभी ₹140 तक वसूले जाते हैं. वहीं छपरा जाने पर ₹60 से ₹80 तक किराया लिया जाता है. शाम के समय यह मनमानी और बढ़ जाती है. विरोध करने पर चालक दबंगई पर उतर आते हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि यात्रियों को किसी तरह की रसीद तक नहीं दी जाती है.
फर्जी स्टैंड और एजेंटों की मनमानी
डेरनी, शीतलपुर और पोझी समेत कई स्थानों पर फर्जी स्टैंड बना दिये गये हैं. यहां फर्जी एजेंट सड़कों पर खड़े होकर बस चालकों से वसूली करते हैं. चालक भी इनका विरोध नहीं करते क्योंकि ये उन्हें कमीशन पर पैसे देते हैं, जो यात्रियों से ही अधिक किराया वसूलकर निकाला जाता है. छोटे वाहनों से आरक्षित यात्रा करने वाले यात्रियों से भी एजेंट जबरन पैसा वसूलते हैं. विरोध करने पर उनके साथ गाली-गलौज और मारपीट की नौबत आ जाती है. प्रशासन की निष्क्रियता के कारण वाहन मालिकों और चालकों में किसी तरह का भय नहीं है.
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