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वर्षा के अभाव में सूखने के कगार पर पहुंच गई है बुढ़नद व मरहा नदी की जल धारा, किसान चिंतित

बारिश के मौसम के बावजूद नेपाल की तराई से निकलकर भारतीय सीमा क्षेत्र में प्रवेश करने वाली अधवारा समूह की बुढ़नद व मरहा नदी की धारा पुपरी प्रखंड क्षेत्र में इन दिनों सूखने के कगार पर पहुंच है.

पुपरी. बारिश के मौसम के बावजूद नेपाल की तराई से निकलकर भारतीय सीमा क्षेत्र में प्रवेश करने वाली अधवारा समूह की बुढ़नद व मरहा नदी की धारा पुपरी प्रखंड क्षेत्र में इन दिनों सूखने के कगार पर पहुंच है. सालों भर बहते रहने वाली इन नदी की अविरल धारा पर बारिश की मौसम होने के बावजूद गर्मी की तपिश से विराम जैसी स्थिति उत्पन्न हो रही है. बरसात के दिनों में करीब 80 – 90 फीट चौड़ी धारा में बहने वाली अधवारा व मरहा नदी की धारा इस समय सिकुड़कर कर करीब 10 – 20 फीट चौड़ी हो गयी है. प्रखंड क्षेत्र के बलहा मकसूदन, घरमपुर गांव के समीप मरहा व सुर्यपट्टी, केशोपुर पुरा, रामपुर पच्चासी गांव के समीप नदी की धारा पूरी तरह सिकुड़ कर बीच में सिमट गई. उक्त नदी के जल में उर्वरा शक्ति ऐसी है कि इसका जल जिन खेतों से होकर गुजर जाती है, उसमें कृत्रिम उर्वरक की जरूरत नही होती है. उक्त नदी के क्षेत्र अंतर्गत खेतों में धान, गेंहू, मक्का, दलहन व गन्ना की खेती खूब होती है. हालांकि पहले की अपेक्षा इसके जल का फैलाव कम खेतों में होने के कारण उर्वरा कृषि योग्य भूमि के क्षेत्रफल में कमी आ गई है. पहले इस मौसम में (जुलाई से सितंबर तक) महीनों तक नदी में काफी मात्रा में मछलियों रहती थी. मात्रा संख्या में मछुआरे नदी से मछली पकड़कर जीविकोपार्जन करते थे. विगत दस वर्षों से मछली की संख्या लगातार कम होती जा रही है. बरसात के दिनों में दोनों नदी के तटबंध के बीच बहने वाली नदी की धारा को लगातार सिमटने से इलाके के किसान मायूस हो गये है. पूर्व में नदी की बाढ़ के पानी को अपने खेतों तक लाने के लिए किसान कई बार तटबंध को भी तोड़ देते थे. ताकि उनके खेतों की भी उर्वरा शक्ति में इजाफा हो सके. लेकिन इन दिनों नदी के पेटी में उड़ते धूल व सिमटी धारा से किसान चिंतित हैं. लोगो को डर है कि आने वाले दिनों में नदी के अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न हो जाएगी. किसान गुलाब ठाकुर, रमेश कुमार, भोगेंद्र चौधरी, नवीन कुमार, राजकुमार मंडल, समाजसेवी रणजीत कुमार मुन्ना समेत इलाके के कई किसानों ने बारिश के मौसम में नदी में पानी नहीं रहने, चापाकल सुखने, खेतों में बिचड़ा जलने व बारिश के अभाव में धान की रोपनी नही होने पर चिंता व्यक्त की है.

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