सीतामढ़ी. मिथिलांचल क्षेत्र में हर वर्ष श्रावण कृष्ण पंचमी तिथि से शुरू होने वाला नवविवाहिताओं का 15 दिवसीय लोकपर्व मधुश्रावणी व्रत शुरू हो चुका है. पंचमी तिथि को विधि-विधान से नाग देवता समेत गौरी-गणेश एवं भगवान शंकर की पूजा-आराधना के संग नवविवाहिताओं ने मधु श्रावणी का यह पखवारे भर चलने वाला व्रत प्रारंभ किया. इसके बाद शहर से लेकर गांव-गांव की नवविवाहितायें सोलह श्रृंगार में सज-धजकर मुहल्ले व टोले की नवविवाहिताओं के साथ झुंड बनाकर फूल लोढ़ने निकल रहीं हैं. मधु श्रावणी के लोक संगीत से नवविवाहिताओं के घर-आंगन से लेकर गांव की सड़कें, गलियां व देव स्थलें गूंजायमान होने लगे हैं. नविवाहिता अपनी सहेलियों संग मधुश्रावणी के लोक गीत गाते हुए जब फूल लोढ़ने निकल रही हैं, तो गांव की सड़कों पर मनोहारी दृश्य देखने को मिल रहा है. वहीं, मधु श्रावणी के मधुर लोक संगीत जनमानस को आनंदित कर रहा है. नवविवाहितायें गांव की विभिन्न फुलवारियों से फूल-पत्तियां लोढ़कर उसे सुंदर सा डाला में सुंदर ढ़ंग से सजाती हैं. अपने-अपने डालों के सजे हुए फूल-पत्तियों का प्रदर्शन करती हैं. गांव के ब्रह्म-स्थान, देवी स्थान व अन्य देव स्थलों की परिक्रमा कर अपने सुखद दांपत्य जीवन की कामना करती हैं. इसी फूल-पत्तियों से अगली सुबह नवविवाहितायें गौरी-गणेश, भगवान शिव एवं विषहारा की विधिवत पूजा-आराधना करती हैं. इस व्रत में पुरुष पुरोहित नहीं होते हैं, बल्कि गांव की कोई ऐसी वृद्ध महिला पुरोहित की भूमिका में होती हैं, जिन्हें लंबे और सुखद दांपत्य जीवन गुजारने का अनुभव हो. मधुश्रावणी व्रत कथा सुना रहीं गायत्री देवी ने बताया कि दरअसल, पंद्रह दिवसीय इस त्योहार के जरिये अनुभवी महिला पुरोहित द्वारा मधुश्रावणी के अलग-अलग खंड की अलग-अलग कथायें सुनायी जाती है. इन कथाओं के जरिये नवविवाहिताओं को कुशलता के साथ सुखद दांपत्य जीवन बिताने की सीख दी जाती है. जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, मर्यादा में रहकर अध्यात्मिक सोच के साथ उन उन उतार-चढ़ाव से सामना करते हुए दांपत्य जीवन को कैसे सुखद बनाया जा सकता है, इसकी कला सिखायी जाती है. यह त्योहार सावन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि तक चलता है. इस त्योहार में फूल-पत्तियों को छोड़ दें, तो इसमें उपयोग होने वाले सभी सामग्री नवविवाहिताओं के ससुराल पक्ष से आते हैं. पति की लंबी आयु के लिये पूर्व में टेमी दागने की परंपरा थी. इसमें होता यह था कि नवविवाहिताओं के घुटने के पास टेमी दागा जाता था. मान्यता थी कि टेमी से दागे गये स्थान पर जितना बड़ा घाव होगा, पति की उतनी ही लंबी आयु होगी. हालांकि, पिछले डेढ़-दो दशक में यह विधि कुरीति की तरह लगभग खत्म हो चुका है.
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