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भगवान शिव ने स्वयं प्रकट होकर की थी शिवलिंग की स्थापना

गोकर्ण के आकार का एकाक्षी शिवलिंग की पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है. बशर्ते शिवपुराण में वर्णित इस प्रकार के शिवलिंग बस्ती से अलग हो.

सुरसंड. गोकर्ण के आकार का एकाक्षी शिवलिंग की पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है. बशर्ते शिवपुराण में वर्णित इस प्रकार के शिवलिंग बस्ती से अलग हो. इंडो-नेपाल बॉर्डर पर स्थित बाबा वाल्मीकेश्वर नाथ महादेव मंदिर में स्थापित इस प्रकार का शिवलिंग इन सभी का प्रतीक है. नगर पंचायत निवासी पंडित विजय कांत झा ने बताया कि पूर्वजों के बताए अनुसार राजा जनक के पूर्व की राज काल में भगवान शिव ने स्वयं प्रकट होकर इस शिवलिंग की स्थापना की थी. उस समय यह स्थान जंगल से पटा था. एक महर्षि तपस्या में इस कदर लीन थे कि उनके अंग-प्रत्यंग को दीमक खा गया था. उस समय एक राजकुमारी अपने सहेलियों के साथ प्रातःकाल जंगल विहार कर रही थी. सूर्य की किरणें महर्षि के आभामंडल पर पड़ रहा था. उसी आभा को देखकर जंगल विहार कर रही राजकुमारी ने तपस्या में लीन महर्षि को एक कांटा चुभो दी. कांटा चुभते ही रक्तस्राव होने लगा. यह देख राजकुमारी व उनकी सहेलियां वहां से भाग खड़ी हुई. राजकुमारी की इस अपराध के कारण जंगल विहार पर आए सभी बीमार पड़ने लगे. यह देख राजा काफी चिंतित हो गए. उन्होंने राज पुरोहित से इस बीमारी का कारण जानने का प्रयास किया. राज पुरोहित के दिव्यदृष्टि से पता चला कि कहीं न कहीं कोई अपराध अवश्य हुआ है. तत्पश्चात जंगल विहार पर आयी राजकुमारी की सहेलियों ने राजा से सारी वृतांत सुनायी. राजा ने स्वयं जाकर उक्त स्थल का अवलोकन किया. उन्होंने वहां एक तपस्वी को परमात्मा में ध्यानस्त देखा. इसके बाद राजा अपनी राजकुमारी को इस अपराध के लिए महर्षि की सेवा में सौंपकर राजधानी लौट गए. इधर, महर्षि की तपस्या पूर्ण होते ही भगवान शिव मां पार्वती के साथ प्रत्यक्ष दर्शन दिए व महर्षि के शरीर के अवशेष को लिंग का आकार दे दिया गया. साथ ही वाल्मीकेश्वर नाथ महादेव का नाम भगवान शिव के द्वारा ही रखा गया. तब से लोग जंगली क्षेत्र होने के बावजूद प्रत्येक रविवार को जलाभिषेक व पूजा-अर्चना करने लगे. 70 के दशक के बाद से लोगों का आस्था बढ़ता गया व दर्शनार्थियों की जनसैलाब उमड़ने लगी. साथ ही दाताओं की कतारें लगती गयी व मंदिर का विकास होता गया. भक्तों के लिए आज यह मंदिर सभी सुविधाओं से सुसज्जित है.

— मंदिर के विकास के लिए शिव सेवा समिति का गठन

मंदिर के संरक्षक पूर्व मुखिया शोभित राउत के द्वारा शिव सेवा समिति का गठन कर सदस्यों व दाताओं के सहयोग से काफी विकास किया गया है. माता पार्वती का मंदिर निर्माण कराने के पश्चात प्रतिमा की स्थापना की गयी. पूरे परिसर का पक्कीकरण कराने के साथ ही चहारदीवारी का निर्माण कराया गया. जिसमें प्रमुख सदस्य प्रवीण कुमार झा उर्फ मुन्ना महादेव, राघवेंद्र ओझा उर्फ टनटन, महेश्वर झा, हरि राउत, राजीव साह व रामटहल राउत समेत अन्य कई सदस्य सराहनीय भूमिका निभाते आ रहे हैं.

— सोमवारी पर 50 हजार से अधिक श्रद्धालु करते हैं जलाभिषेक

सावन मास शुरू होते ही श्रद्धालुओं की संख्या में काफी बढ़ोतरी हो जाती है. सावन में प्रत्येक सोमवार को स्थानीय व अन्य प्रखंडों समेत नेपाल के सीमावर्ती गांव से आए 50 हजार से अधिक महिला-पुरुष श्रद्धालु जलाभिषेक कर पूजा-अर्चना करते हैं. कई साइकिल सवार शिवभक्त तो पहलेजा व सिमरिया से गंगाजल लाकर शिवलिंग पर चढ़ाते हैं. भीड़ को काबू करने के लिए समिति के सदस्यों के अलावा पुलिस व महिला कांस्टेबल की प्रतिनियुक्ति की जाती है. पुपरी के एसडीओ व एसडीपीओ समेत प्रखंड प्रशासन की भी मुस्तैदी रहती है. वहीं मंदिर के आसपास सभी प्रकार की दुकानें सजी रहती है.

— प्रत्येक वर्ष महाशिवरात्रि पर निकाली जाती है शिव की बरात

शिव सेवा समिति के तत्वावधान में प्रत्येक वर्ष महाशिवरात्रि के दिन भव्य आयोजन के साथ भगवान शिव की बरात निकालकर नगर भ्रमण कराया जाता है. वहीं अन्य राज्यों से बुलाए गए नामचीन कलाकारों द्वारा रात्रि में शिव पार्वती विवाह का आयोजन किया जाता है. जिसे देखने के लिए स्थानीय समेत नेपाल के सीमावर्ती गांव की हजारों महिला-पुरुष श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है.

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