सीतामढ़ी. सोमवार को ज्येष्ठ अमावस्या तिथि पर अखंड साैभाग्य के लिये शहर से लेकर जिले भर की सुहागिन महिलाओं ने व्रत रखकर पति की लंबी उम्र की कामना के साथ सोलह श्रृंगार में सज-धजकर विधि-विधान से वटवृक्ष की पूजा-आराधना की. एक दिन पूर्व रविवार से ही सुहागिन महिलाओं द्वारा इसकी विधि शुरू कर दी गयी थी. नवविवाहित महिलाओं द्वारा विशेष प्रकार से वटवृक्ष की पूजा की गयी. शहर से लेकर गांव-गांव के वटवृक्ष यानी बरगद के वृक्ष के नीचे सुबह करीब 11.00 बजे से शुभ मुहूर्त में सुहागिन स्त्रियां एक से बढ़कर एक परिधान में सज-धजकर पारंपरिक लोकगीत गाते हुए वटवृक्ष के नीचे इकट्ठा होकर पूजा-आराधना प्रारंभ की. यह सिलसिला शाम तक चलता रहा. सुहागिन स्त्रियों ने वटवृक्ष पर सूत वाले धागे लपेटकर परिक्रमा करते हुए विधि-विधान से पूजा की. अंकूरित चना, मटर व मूंग को प्रसाद के रूप में भगवान को भोग लगाया गया. बाद में इसे प्रसाद के रूप में वितरित किया गया. सावित्री और सत्यवान की कथा सुनीं और भगवान से अखंड सौभाग्य का वर मांगा. मान्यता है कि सावित्री नामक एक नारी के पति सत्यवान अल्पायु थे. सावित्री की पतिव्रता धर्म से प्रसन्न होकर एक दिन नारद जी सावित्री के पास पधारे. सावित्री ने प्रणाम किया. सावित्री ने नारद जी से पति की लंबी आयु मांगी. नारद जी ने सावित्री से कहा कि तुम कोई और वर मांग लो, क्योंकि तुम्हारे पति अल्पायु हैं. नारद जी का यह वचन सुनकर सावित्री परेशान रहने लगीं और पति के लिये और तपस्या करने लगीं. सत्यवान की आयु समाप्त होने पर एक दिन यमराज अपने दूतों के साथ पहुंचकर सत्यवान के प्राण हरकर ले जा रहे थे. सावित्री यमराज का पीछा करने लगी. यमराज ने सावित्री को वापस जाने को कहा, लेकिन सावित्री ने हठ कर दिया कि जहां उनके पति रहेंगे, वह भी वहीं रहेंगी. इसके बाद यमराज को सावित्री की पतिव्रता धर्म के आगे झुकना पड़ा और सावित्री के प्रति सत्यवान का प्राण लौटाना पड़ा. सावित्री उस वटवृक्ष के नीचे पहुंची, जहां सत्यवान का शव छोड़ गयी थीं. वहां आने पर सत्यवान जीवित मिले. सावित्री ने वटवृक्ष् की विधि-विधान से पूजा-आराधना की. तभी से पति की लंबी आयु की कामना के साथ सुहागिन स्त्रियों द्वारा वटवृक्ष की पूजा-आराधना की जाती है.
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