महाराजगंज. कुर्बानी का मतलब केवल जानवर की कुर्बानी नहीं, बल्कि दिल की सच्चाई और अल्लाह के हुक्म की तामील है. ये बातें अजीजिया अशरफिया मदरसा के शिक्षक मौलाना जमुरुद्दीन चतुर्वेदी ने सोमवार को प्रभात खबर से विशेष बातचीत में कहीं. उन्होंने कहा कि कुर्बानी देने वाले की नीयत सिर्फ अल्लाह की रजा होनी चाहिए. दिल में कोई दुनियावी लालच या दिखावा नहीं होना चाहिए. उन्होंने कहा कि कुर्बानी हर साहिब-ए-निसाब मुसलमान मर्द और औरत पर हर साल वाजिब है. लेकिन, इसके लिए कुछ नियम व शर्तें भी हैं. जैसे कुर्बानी वही अदा करेगा जो साहिब-ए-निसाब है. इस साल चांदी की कीमत के अनुसार जिसकी मिल्कियत में 51,950 रुपये हों, वह साहिब-ए-निसाब कहलायेगा. कुर्बानी सिर्फ तीन ही दिनों में अदा की जा सकती है और इसे जानवर की कुर्बानी से ही पूरा किया जा सकता है. किसी और तरीके या केवल पैसे दान देने से यह फर्ज अदा नहीं होगा. उन्होंने बताया कि कुर्बानी के लिए जानवर का सही और बेऐब होना जरूरी है. अगर साझेदारी की कुर्बानी की जा रही हो, तो सभी साझेदारों की नीयत अल्लाह की रजा और सवाब की होनी चाहिए, अगर किसी की नियत सिर्फ गोश्त पाने की हो या उसमें कोई गलत अकीदे वाला शामिल हो जाये, तो पूरी कुर्बानी फासिद हो जाती है. साझेदारी की कुर्बानी में गोश्त को तौलकर बराबर बांटना जरूरी है. अंदाजे से बंटवारा जायज नहीं है. गौरतलब है कि सात जून को बकरीद का त्योहार मनाया जायेगा. मौलाना ने बताया कि बकरीद के चांद की सभी को बेसब्री से इंतजार रहता है. उन्होंने बताया कि इस्लाम धर्म में बकरीद का खास महत्व है. इसे कुर्बानी का त्योहार भी कहा जाता है. बकरीद से लेकर तीन दिन तक लोग मनपसंद जानवरों की कुर्बानी देते हैं. यानि 7, 8 और 9 जून को कुर्बानी दी जायेगी. बकरीद के मौके पर ही सऊदी के पाक शहर मक्का में हज भी अदा होती है. बकरीद के दिन पैगंबर ने अपने बेटे की दी थी कुर्बानी इस्लाम धर्म की मान्यताओं के मुताबिक एक बार अल्लाह ने पैगंबर हजरत इब्राहिम के ख्वाब में आकर अपने एक प्यारी चीज को कुर्बान करने को कहा. हजरत इब्राहिम अपने इकलौते बेटे इस्माइल को सबसे अधिक प्रेम करते थे. अल्लाह की मर्जी को पूरा करने के लिए वह अपने बेटे को कुर्बान करने के लिए तैयार हो गये. उन्होंने अपनी आंखों में पट्टी बांध ली, जिससे उनका पुत्र मोह अल्लाह के राह में बाधा नहीं बने. इसके बाद उन्होंने कुर्बानी दे दी, लेकिन जैसे ही उन्होंने अपनी आंखों से पट्टी हटाई तो देखा उनका बेटा इस्माइल सही सलामत है और उसकी जगह एक दुम्बा कुर्बान हो गया था. तीन भागों में बांटा जाता है कुर्बान किया हुआ बकरा बकरीद के दिन जिस बकरे की कुर्बानी दी जाती है, उसे तीन हिस्सों में बांटा जाता है. इसमें से पहला हिस्सा घर-परिवार, दूसरा हिस्सा अपने किसी दोस्त या फिर करीबी को और तीसरा हिस्सा गरीब या जरूरतमंद को दे दिया जाता है.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है