बोकारो, भगवान के प्रति प्रेम व भक्ति बिना उनकी कृपा के नहीं होती. ये बातें स्वामी अद्वैतानंद सरस्वती ने चिन्मय विद्यालय बोकारो के तपोवन सभागार में चल रहे मानस ज्ञान यज्ञ के दौरान कही. स्वामी अद्वैतानंद ने अहिल्या का उदाहरण देते हुए कहा कि प्रभु मुनि ने जो उसे पत्थर होने का शाप दिया था, उनका अनुग्रह उसके ऊपर हुआ. वह उसी श्राप के कारण नयन भरकर प्रभु कोमल भव-भयमोचन स्वरूप को देख रही हूं. अर्थात् जब तक ईश्वर की इच्छा नहीं होगी, भगवत भक्ति जीव को प्राप्त नहीं होती है.
प्रभु की वंदना संपूर्ण वेदांत का सार
स्वामी अद्वैतानंद ने कहा कि जब कृपालुशील कोमल चित रघुकुल नंदन प्रभु श्रीराम ने ऋषि वाल्मीकि से पूछा कि हे त्रिकालदर्शी, परमज्ञानी ऋषि वाल्मीकि मुझे वन में निवास के लिए उपयुक्त स्थान बताइये, ताकि वन में निवास करने वाले ज्ञानी, ध्यानी, मंत्रदृष्टा तपोलिन ऋषियों को हमारे व्यवहार से कष्ट ना हो. इसपर ऋषि प्रभु श्रीराम के कोमल व विनीत वचन सुनकर भावद्रविड़ हो गये. ऋषि वाल्मीकि द्वारा प्रभु की वंदना संपूर्ण वेदांत का सार है. ऋषि कहते हैं कि हे प्रभु! आप स्वयं वेद की मर्यादा के रक्षक हैं. परब्रह्म जगदीश्वर हैं. स्वामी अद्वैतानंद ने कहा कि परमात्मा निराकार, निर्गुण, अव्यक्त है. लेकिन, जब वह साकार रूप लेता है, वही अवतार है.
ये थे मौजूद
इस दौरान विशेष रूप से उपस्थित प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश अनिल कुमार मिश्रा को स्वामी श्री सरस्वती ने स्मृति चिन्ह भेंट किया. मौके पर चिन्मय मिशन बोकारो की आवासीय आचार्या स्वामिनी संयुक्तानंद सरस्वती, विद्यालय अध्यक्ष बिश्वरूप मुखोपाध्याय, सचिव महेश त्रिपाठी, कोषाध्यक्ष आरएन मल्लिक, प्राचार्य सूरज शर्मा, उप-प्राचार्य नरमेंद्र कुमार व अन्य उपस्थित थे.
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