सीपी सिंह, बोकारो, वादा है, वादा का क्या. चुनाव आते देख शिलान्यास होता है और चुनावी परिणाम के कई माह बीत जाने के बाद शिलान्यास के आगे काम शुरू नहीं होता. यहां तक की जिला प्रशासन भी मामले में मौन रह जाता है. जरीडीह प्रखंड के भस्की पंचायत के रोरिया गांव इसी दंश का मार झेल रहा है. तीन ओर से नदी व एक ओर से पहाड़ से घिरे गांव में आवागमन के लिए आजतक सुविधा नहीं है. गांव व ग्रामीणों के खराब किस्मत का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि नदी पर पुल बनाने के लिए सात साल में दो बार पहल हुई. शिलान्यास तक किया गया. लेकिन, कुछ हासिल नहीं हुआ.
बजटीय प्रावधान कम होने के कारण 2.45 किमी ही सड़क बनी, पुल का नहीं हुआ काम
12 नवंबर 2017 को ग्रामीण विकास (ग्रामीण कार्य मामले) विभाग की ओर से प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत नदी पर पुल निर्माण का शिलान्यास तत्कालीन सांसद रवींद्र कुमार पांडेय व तत्कालीन विधायक योगेश्वर प्रसाद महतो ने किया था. लेकिन, बजटीय कारण से निर्माण पूरा नहीं हो सका. ग्रामीण बताते हैं कि बजटीय प्रावधान कम होने के कारण 2.45 किमी ही सड़क बनी. पुल का काम नहीं हुआ. इसके बाद सात अक्तूबर 2024 को पुल निर्माण का शिलान्यास गिरिडीह के सांसद सीपी चौधरी समेत बेरमो विधायक कुमार जयमंगल व पूर्व गोमिया विधायक लंबोदर महतो ने किया. शिलान्यास के क्रम में ग्रामीणों का उत्साह देखते ही बन रहा था. लेकिन, यह उत्साह समय के साथ अब शांत होने लगा है. ग्रामीण शिलान्यास कार्यक्रम को चुनावी स्टंट करार देने लगे हैं.
ग्रामीणों ने लगायी गुहार, हर बार मिला सिर्फ आश्वासन
2017 में पुल निर्माण काम बंद होने के बाद ग्रामीणों ने तत्कालीन जनप्रतिनिधि योगेश्वर प्रसाद महतो से गुहार लगायी, लेकिन इस मसले पर कुछ नहीं हुआ. इसके बाद 12 सितंबर 2022 को बेरमो विधायक कुमार जयमंगल व 18 सितंबर 2022 को गोमिया के पूर्व तत्कालीन विधायक लंबोदर महतो से गुहार लगायी गयी. आश्वासन मिला. बाद में शिलान्यास भी हुआ. लेकिन, वादा, आश्वासन व शिलान्यास के आगे कुछ नहीं हुआ. रोरिया से अन्य गांवों तक जाने के लिए कोतोगड़ा गांव के गटीगढ़ा टोला से होकर गुजरना पड़ता है. इन दोनों के बीच नदीं है, जिस पर छोटा सा पुल है. जो जर्जर है. इसके बावजूद इसी पुल का इस्तेमाल करना मजबूरी है, क्योंकि यही गाड़ी लाने के लिए यही एकमात्र जरिया भी है. लेकिन, पुल के लिए संपर्क पथ नहीं है. गांव की जनसख्या एक हजार के करीब है. इनमें से ज्यादातर कर्मी, मुंडा व अन्य जाति के है. जो खेती-बाड़ी व मजदूरी करते हैं.
बरसात में स्कूल नहीं जा पाते बच्चे, कोई नहीं ले रहा सुध
गांव में पढ़ाई के लिए मध्य विद्यालय टोडरा (जरीडीड) व उसके आगे की पढ़ाई के लिए कसमार प्रखंड के उवि- पिरगल, उवि मुरहूल व उवि-हरनाद जाना पड़ता है. इन स्कूलों तक जाने के लिए नदी पार करनी पड़ती है. ठंड व गर्मी में, तो बच्चे नदी पार कर जाते हैं, लेकिन बरसात में जलस्तर बढ़ने पर करीब तीन माह तक पढ़ाई छूट जाती है. इतना नहीं किसी के बीमार पड़ने पर डोली या खटिया के सहारे नदी पार करना पड़ता है. यहां तक की जुलाई से सितंबर तक ग्रामीणों को मवेशी चराने में भी परेशानी होती है. रोरिया गांव से कसमार प्रखंड के नजदीकी गांव कोतोगढ़ा जाने के लिए गवई नदी पार करना पड़ता है. आम दिनों में तो काम चल जाता है, लेकिन बरसात के दिनों में गांव दूसरी जगह से कट जाता है. बरसात में तो जान आफत में डालकर आना-जाना करते हैं. कारण है कि रोरिया भले ही जरीडीह प्रखंड में पड़ता है, लेकिन यहां की हर जरूरत कसमार प्रखंड के गौराचातर बाजार से पूरी होती है. इतनी परेशानी के बाद भी ग्रामीणों की बात सुनने वाला कोई नहीं है.
एक सप्ताह के अंदर निर्माण होगा शुरू
ग्रामीण विकास विशेष प्रमंडल बोकारो के एक्जीक्यूटिव इंजीनियर राजू मरांडी ने कहा कि कुछ तकनीकी समस्या के कारण पुल निर्माण शुरू नहीं हो रहा था. कुछ दिन में सभी समस्याओं का समाधान कर लिया जायेगा. एक सप्ताह के अंदर निर्माण कार्य शुरू हो जायेगा.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है