Bokaro Heritage | ललपनिया, नागेश्वर: झारखंड राज्य अपने खूबसूरत प्राकृतिक दृश्यों और समृद्ध सांस्कृतिक व ऐतिहासिक धरोहर के लिए जाना जाता है. यहां ब्रिटिश काल से जुड़ी कई यादें भी देखने को मिल जाती है. लेकिन समय के साथ अतीत की स्मृतियां धुंधली होती जा रही है. इसी वजह से बोकारो में स्थित ब्रिटिश काल में बना मस्तूल भी धीरे-धीरे खंडहर में बदल रहा है.
बोकारो के कढमा में स्थित है मस्तूल
जानकारी के अनुसार, बोकारो जिला के गोमिया प्रखंड अंतर्गत हजारीबाग पूर्वी वन प्रमंडल क्षेत्र के चतरोचट्टी क्षेत्र में बडकीचिदरी पंचायत के कढमा गांव के पास पहाडी में एक मस्तूल है. इसका निर्माण ब्रिटिश काल में किया गया था. यह मस्तूल वाच टावर के नाम से भी जाना जाता है. लेकिन देख-रेख और मरम्मत के अभाव में वाच टावर खंडहर में तब्दील हो गयी.
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लंबी दूरी का नजारा देख सकते हैं
हालांकि, अब भी मस्तूल लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने में पीछे नहीं है. इस वाच टावर की खूबसूरती है कि इस पर चढ़कर आप काफी लंबी दूरी तक के नजारा का दीदार कर सकते हैं. आपको वाच टावर से इलाके के एक छोर से दूसरी छोर तक का दृश्य दिखाई पड़ता है.
लोगों ने क्या कहा…
क्षेत्र के लोगों का कहना है कि यह एक धरोहर के रूप में है,जो पूर्वजों की याद दिलाती है. ग्रामीणों ने बताया कि ब्रिटिश काल के दौरान इस इलाके में काफी घना जंगल हुआ करता था. ऐसे में वाच टावर का उपयोग घने जंगल में रहने वाले वन्य प्राणियों का अवलोकन करने समेत अन्य कार्यों के लिए किया जाता है. इसके अलावा विविध गतिवधियों में भी वाच टावर को उपयोग में लाया जाता था.
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ऐतिहासिक धरोहर को किया जा सकता है संरक्षित
मालूम हो कि इस वाच टावर से झुमरापहाड़ और आसपास का पहाड़ी क्षेत्र दिखाई पड़ता है. लेकिन वर्तमान में वाच टावर का कोई उपयोग नहीं है. वन विभाग वाच टावर की मरम्मत कर इसे खत्म होने से बचा जा सकता है. इस तरह एक ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षित किया जा सकता है.
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पर्यावरणविद जटलू महतो की वन विभाग से मांग
इधर, पर्यावरणविद जटलू महतो ने वन विभाग के डीएफओ से मांग की है कि वाच टावर क्षेत्र को एक धरोहर के रूप में देखा जा रहा है. इसे मरम्मति कर वन विभाग अपने काम में ला सकती है. वहीं, इलाके के ग्रामीणों का कहना है कि यह केवल एक स्थान के लिए ही नहीं बल्कि पूरे गोमिया प्रखंड के लिए ऐतिहासिक धरोहर स्थल के रुप में जाना जायेगा.
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