बेरमो/गांधीनगर (बोकारो), कोयला उत्पादक कंपनी सीसीएल के बीएंडके एरिया अंर्तगत कारो परियोजना के क्वायरी-टू में करीब 62 मिलियन टन कोल रिजर्व है. यह पूरा एरिया फॉरेस्ट लैंड है, जो करीब 226.67 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है. केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने स्टेज-वन का क्लीयरेंस काफी पहले दे दिया था, जबकि स्टेज दो का क्लीयरेंस जुलाई 2024 में दिया. अब सीसीएल प्रबंधन इस जमीन पर कोयला खनन करने जा रहा है. खनन से पहले सीसीएल प्रबंधन को बड़े पैमाने पर हरे-भरे पेड़ काटने होंगे. जानकारों की मानें, तो 226.67 हेक्टेयर जमीन पर करीब 41000 पेड़ हैं. यहांं दो फेज में कोयला उत्पादन करना है. पहले फेज में 6500 पेड़ काटे जायेंगे. वहीं दूसरे फेज में 35000 पेड़ काटे जाने हैं. अभी जिस स्थान पर कोयला उत्पादन व ओबी निस्तारण का काम चल रहा है, वहां से अभी तक डेढ़ हजार हजार पेड़ काटे जा चुके हैं. बताते चलें कि कारो परियोजना में कुछ माह पहले चार साल के लिए एक पैच का टेंडर हुआ था, जिसका काम डीसीसीपीएल कंपनी को मिला है. इस पैच में 24 मिलियन टन कोयला है. इधर, बैदकारो कोयलांचल विस्थापित संघर्ष मोर्चा का महिला प्रकोष्ठ पेड़ों को बचाने के लिए आगे आया है. शनिवार को कारो परियोजना से सटी पुरानी इंक्लाइन के समीप के जंगल के पेड़ों में रक्षा सूत्र बांध कर इसे कटने से बचाने का संकल्प लिया. ग्रामीणों ने कहा कि किसी भी स्थिति में पेड़ों को नहीं कटने देंगे. कार्यक्रम के बाद हुई बैठक में ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि बिना ग्राम सभा की अनुमति के माइंस का विस्तार किया जा रहा है तथा जंगलों को उजाड़ने का प्रयास किया जा रहा है.
ग्रामीण बोले : जंगल उनकी जीविका का प्रमुख माध्यम
विस्थापित नेता व एचएमकेपी के प्रदेश महासचिव इंद्रदेव महतो ने कहा कि सीसीएल प्रबंधन ग्रामीणों की मांगों की अनदेखी कर माइंस का विस्तार करना चाह रहा है. वर्ष 2019 में सीसीएल ने माइंस विस्तार को लेकर ग्राम सभा की थी, जिसका ग्रामीणों ने बहिष्कार किया था. प्रबंधन वन समिति की बिना सहमति के पेड़ों को काटना चाह रहा है, जो नहीं होने दिया जायेगा. समिति के अध्यक्ष वतन महतो ने कहा कि सीसीएल प्रबंधन की हठधर्मिता के खिलाफ बैदकारो के ग्रामीण एकजुट हैं. जंगल ग्रामीणों की जीविका का एक प्रमुख माध्यम है. इसे उजाड़ने से पहले प्रबंधन ग्रामीणों के रोजगार, नौकरी व मुआवजे के बारे में तत्काल पहल करे. विस्थापित अहमद हुसैन ने कहा कि कारो परियोजना के पास पूर्व में अधिग्रहीत काफी जमीन है, परंतु प्रबंधन जंगल उजाड़ने पर तुला है. 15 मई को आंदोलन के दूसरे चरण में करगली महाप्रबंधक कार्यालय के समक्ष प्रदर्शन कर ज्ञापन सौंपा जायेगा. सीसीएल प्रबंधन को लगाने होंगे दोगुना पेड़ : नियम कहते हैं कि जितनी जमीन फॉरेस्ट से सीसीएल को कोयला खनन के लिए मिलती है, उसका दोगुना वन विभाग के पास जमा करनी होती है. यानी कारो की 226.67 हेक्टेयर भूमि के बदले डिग्रेडेड फॉरेस्ट लैंड यानी कुल 453.34 हेक्टेयर जमीन वन विभाग को देनी होगी. प्रबंधन का कहना है कि इतनी जमीन वन विभाग को उपलब्ध करा दी गयी है. फोॉरेस्ट लैंड में कोयला खनन के लिए जितने पेड़ काटे जायेंगे, उसे वन विभाग के डिपो में जमा करना होगा. इतना ही नहीं, डिग्रेडेड फॉरेस्ट लैंड पर सीसीएल को दोगुना पेड़ लगाने होंगे और मेटनेंस के लिए राज्य सरकार के पास राशि जमा करनी होगी. जिस जमीन पर पेड़ काटे जायेंगे, वहां वायु व जल प्रदूषण एवं मिट्टी का संरक्षण करना होगा. सीसीएल प्रबंधन को वन विभाग के साथ मिलकर सॉइल मॉइश्चर इंजेक्शन प्लान बनाना है. इस प्लान पर जितना भी खर्च आयेगा, उसे सीसीएल को वन विभाग के कैंपा अकाउंट में जमा करना होता है. फॉरेस्ट लैंड से पांच किमी के रेडियस में डी-सेलिटेशन प्लान बनाना है तथा पांच से 10 किमी के रेडियस में सॉइल मॉइश्चर इंजेक्शन प्लान बनाना है. इसका भी सारा खर्च सीसीएल को वन विभाग को देना है. इन सबके अलावा उक्त फॉरेस्ट लैंड में वन्य प्राणियों के संरक्षण के लिए वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन प्लान बनाना है.
जिस स्थान पर खनन व ओबी निस्तारण का काम चल रहा है, वहां 6500 पेड़ हैं, जिनमें से अभी तक डेढ़ हजार पेड़ काटे गये हैं. दूसरे फेज की माइनिंग में 3500 पेड़ हैं. यानी 226.67 हेक्टेयर फॉरेस्ट लैंड में करीब 41000 पेड़ हैं. एसके सिन्हा, पीओ, कारो प्रोजेक्ट, सीसीएलडिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है