संजय मिश्रा, बोकारो थर्मल, नावाडीह प्रखंड अंतर्गत ऊपरघाट के बरई गांव का एक हिंदू परिवार डेढ़ सौ वर्षों से मुहर्रम का त्योहार मना रहा है, जबकि गांव में एक भी मुस्लिम परिवार नहीं है. स्व जमींदार पंडित ने इसकी शुरुआत की थी और उनके वंशज आज भी इसे निभा रहे हैं. आयोजन में गांव के अन्य लोग भी शामिल होते हैं. स्व जमींदार पंडित के परिवार ने अपनी जमीन पर इमामबाड़ा व कर्बला भी बनाया है. रविवार को मुहर्रम के मौके पर ताजिया का गांव में भ्रमण कराया जायेगा. मेला का भी आयोजन होगा. रविवार की शाम को ताजिया को कब्रिस्तान में दफन किया जायेगा.
स्व जमींदार पंडित ने की थी शुरुआत
स्व जमींदार पंडित के वंशज चिंतामणि साव, रविशंकर साव, कुंदन साव, उपेंद्र साव, सुरेश साव, दीपक साव, जितेंद्र साव, वीरेन्द्र साव, रवि कुमार, पाली, ज्योतिष, सतीश, प्रिंस, जिगर व सुगन साव आदि ने बताया कि उनके पूर्वज बरई गांव के जमींदार थे. आजादी के पहले बारीडीह के जमींदार से सीमा क्षेत्र को लेकर खूनी संघर्ष हुआ था. मामले में जमींदार पंडित को हजारीबाग न्यायालय द्वारा फांसी की सजा सुनायी गयी थी. जिस दिन फांसी देना था, उस दिन मुहर्रम था. अंतिम इच्छा पूछी गयी तो उन्होंने मुजावर से फातिया सुनने की इच्छा जाहिर की. इच्छा पूरी होने के बाद उन्हें फैसले के अनुसार फांसी देने के लिए ले जाया गया, लेकिन तीन बार फांसी का फंदा खुल गया और ब्रिटिश कानून के तहत उन्हें मुक्त कर दिया गया था. इसके बाद उन्होंने नावाडीह प्रखंड के सहरिया गांव के मुजावर की देखरेख में बरई गांव में इमामबाड़ा बना कर मुहर्रम के मौके पर फातिया पढ़ना शुरू किया.
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