चाईबासा.कोल्हान विश्वविद्यालय सभागार में मंगलवार को जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग की ओर से राष्ट्रीय संगोष्ठी सह बाहा मिलन समारोह का आयोजन किया गया. कार्यक्रम की शुरुआत प्रकृति वंदन स्वरूप साल के पौधे पर जल अर्पण करके की गयी. कोल्हान विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर डॉ. अंजिला गुप्ता ने कहा कि आधुनिक दौर में जंगलों की अंधाधुंध कटाई के कारण ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव बढ़ता जा रहा है. इसका दुष्परिणाम किसी से छिपा नहीं है. पर्यावरण को संतुलित बनाए रखने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम पांच-पांच पेड़ लगाने चाहिए.
बाहा केवल फूल नहीं, बल्कि सृष्टि का प्रतीक : डॉ सुनील मुर्मू
जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभागाध्यक्ष डॉ. सुनील मुर्मू ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि बाहा केवल फूल नहीं, बल्कि सृष्टि का प्रतीक भी है, जिसे आदिवासी समाज बाहा पर्व के रूप में हर्षोल्लास के साथ मनाता है. संताल समुदाय बिना पूजा-अर्चना किये जंगल से प्राप्त नए फूल-पत्तों का सेवन नहीं करते हैं.जीवन के लिए पेड़ बचाना जरूरी : पद्मश्री चामी मुर्मू
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पर्यावरणविद् पद्मश्री चामी मुर्मू ने कहा कि आदिवासी समाज सदैव प्रकृति से जुड़ा रहा है. उनका कार्य हमेशा पेड़ों की रक्षा करना रहा है. केवल आदिवासी समुदाय ही नहीं, बल्कि सभी मनुष्यों को पेड़ों को बचाने के लिए निरंतर प्रयास करना चाहिए, तभी पर्यावरण सुरक्षित रह सकता है.धरती नहीं बचेगी तो मनुष्य का अस्तित्व समाप्त हो जायेगा : डॉ. गुमदा मार्डी
संगोष्ठी में विशेषज्ञ वक्ता पांसकुड़ा बनमाली कॉलेज (पश्चिम मिदनापुर, पश्चिम बंगाल) के डॉ. गुमदा मार्डी ने बाहा पर्व की दार्शनिक विवेचना विषय पर विस्तृत व्याख्यान दिया. उन्होंने कहा कि विज्ञान चाहे जितनी भी उन्नति कर ले, जब तक प्रकृति सुरक्षित नहीं रहेगी तो धरती भी नहीं बचेगी. यदि धरती नष्ट हो गयी, तो न केवल मनुष्य बल्कि अन्य सभी जीव-जंतु भी विलुप्त हो जाएंगे. बाहा पर्व की कल्पना भी प्रकृति के बिना असंभव है.हमें प्रकृति से जुड़ना सिखाता है बाहा : जतिन्द्र नाथ बेसरा
दूसरे विशेषज्ञ वक्ता एमएससीबी. कॉलेज (बारीपदा, ओडिशा) के संताली विभागाध्यक्ष डॉ. जतिन्द्र नाथ बेसरा ने बाहा पर्व की वैज्ञानिकता विषय पर पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन के माध्यम से व्याख्यान प्रस्तुत किया. उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज सदियों से प्रकृति से जुड़ा रहा है और उनकी जीवनशैली हमेशा प्रकृति के अनुकूल रही है. प्रकृति के विपरीत कार्य करना तर्कसंगत नहीं है.दो सत्रों में हुआ आयोजन
कोल्हान विश्वविद्यालय के विभिन्न अंगीभूत महाविद्यालयों एवं स्नातकोत्तर विभागों के छात्र-छात्राओं ने बाहा पर्व से संबंधित सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए. प्रथम सत्र में राष्ट्रीय संगोष्ठी व द्वितीय सत्र में बाहा मिलन समारोह का आयोजन हुआ, जिसमें बड़ी संख्या में छात्र-छात्राओं ने विश्वविद्यालय परिसर में बाहा नृत्य किया. ढोल-नगाड़ों की थाप पर छात्र-छात्राओं की थिरकन आकर्षण का केंद्र बनी. मंच संचालन प्रो. दानगी सोरेन और निशोन हेम्ब्रम ने किया. कार्यक्रम को सफल बनाने में सुभाष चंद्र महतो, डॉ बसंत चाकी, शिक्षण सहायक धनुराम मार्डी, गोनो आल्डा, वीणा कुमारी, लीलावती, देवराज, गौरंग मुर्मू, शंभु टुडू, संजीव मुर्मू, दिकुनाथ आदि की भूमिका रही. कार्यक्रम में स्नातकोत्तर के विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष एवं शिक्षक-शिक्षिकाएं उपस्थित थे.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है