चाईबासा.गर्मी शुरू होते ही चाईबासा की जीवन रेखा कही जाने वाली रोरो नदी एक बार फिर सिमटने लगी है. इतना ही नहीं इसका जलस्तर भी तेजी से घटता जा रहा है. कहीं घुटने भर, तो कहीं एड़ी तक ही पानी है. वहीं, कई लोग घरों के कचरों के साथ प्लास्टिक के बोरे, पॉलीथीन आदि नदी में ही बहा दे रहे हैं. इससे रोरो नदी कम कचरा डंप अधिक लग रहा है. कचरों की वजह से लोगों को स्नान करने से लेकर मवेशी धोने तक में परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. यह नदी रोरो जंगल और पहाड़ी से होते हुए चाईबासा की नीमडीह पंचायत अंतर्गत करणी मंदिर के पास तक पहुंचती है. इसके बाद यह चिरू होते हुए आगे की ओर बढ़ जाती है.
नदी तट पर फेंकी जा रही निर्माण सामग्री
मालूम हो कि झारखंड अगल होने से पूर्व तक इस नदी में सालोंभर घुटने से ऊपर तक पानी रहा करता था. लेकिन झारखंड अलग राज्य घोषित होने के बाद गृह निर्माण में तेजी आयी है और बहुमंजिला इमारतें भी बनने लगी हैं. गृह निर्माण के साथ यहां निर्माण सामग्री से लेकर घर के कचरों को भी लोग नदी और इसके तट पर फेंकने लगे हैं, जो हवा और बारिश के साथ नदी में प्रवेश कर जाते हैं. इसके अलावा नदी की सफाई नहीं होने के कारण कचड़ा जमा होते जा रहा है, जिससे नदी में घास तक उग आयी हैं.
कोट
पंचायत में जब भी ग्रामसभा होती है, मैं लोगों से नदी में प्लास्टिक नहीं फेंकने का अनुरोध करती हूं. साथ ही यह भी बताती हूं कि प्लास्टिक को एक जगह रख दें. ताकि उसका निस्तारण किया जा सके. पंचायत क्षेत्र के लोगों से भी कहा गया है कि सूखा और गिला कचरे को अलग कर लें, ताकि मवेशी या कोई जीव-जंतु गीले प्लास्टिक में रखी खाद्य सामग्री के साथ न खा लें.-सुमित्रा देवगम, मुखिया.
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गर्मी के दिनों में रोरो नदी के पानी का बहाव धीमा होता है. साफ-सफाई के अभाव में कहीं-कहीं पानी घटकर एड़ी के नीचे तक पहुंच जाता है. इससे लोगों को स्नान करने व कपड़े धोने में परेशानी होती है. हमलोग हर वर्ष चैती छठ के समय नदी की साफ- सफाई करते हैं. इसके साथ ही घुटने तक पानी के लिए मेड़ बनाकर जलधार को रोक देते हैं. इससे घुटने तक पानी जमा हो जाता है और व्रती पूजा कर पाते हैं.
-विनय निषाद, अध्यक्ष, फेनाटिक क्लबडिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है