कुंदा. कुंदा प्रखंड के 78 गांवों में 41 गांव ऐसे हैं, जहां सड़क की सुविधा नहीं है. इन गांवों के ग्रामीण पगडंडी के सहारे आवागमन करने को विवश हैं. कुछ गांव में कच्ची सड़कें है, लेकिन बारिश के बाद चलने के लायक नहीं है. सड़क नहीं रहने के कारण इन गांवों में रहनेवाली बड़ी आबादी के समक्ष परेशानी उत्पन्न हो गयी है. गांव की स्थिति ऐसी है कि बीमार होने पर भगवान ही सहारा है. गर्भवती महिलाओं यदि प्रसव पीड़ा हुई, तो उन्हें खाट पर टांग पांच से दस किमी की दूरी तय कर मुख्य सड़क तक लाने के बाद वाहन से अस्पताल ले जाना पड़ता है. ग्रामीणों के अनुसार प्रखंड के कई गांव नदियों से घिरा है. नदियों पर पुल नहीं रहने के कारण बरसात के दिनों में कई गांवों का संपर्क दूसरे इलाके से कट जाता है. गांव का स्वरूप टापू जैसा हो जाता है. लोगो का संपर्क प्रखंड मुख्यालय से कट जाता है. कई बार ग्रामीणों को नदियों के किनारे पानी कम होने का इंतजार करते देखा जा सकता है. ग्रामीणों के अनुसार कहीं वन भूमि, तो कहीं प्रशासनिक अनदेखी के कारण सड़क नहीं बन पा रही है. ग्रामीणों के अनुसार गत 10 जून को सड़क के अभाव में सर्पदंश से घायल मांडरपट्टी गांव निवासी सुकुल भुइयां को समय पर अस्पताल नहीं पहुंचया जा सका, जिस कारण उसकी मौत हो गयी. इन गांवों में नहीं है सड़क: प्रखंड के दारी, बनाशाम, उलवार, रतनाग, लालीमाटी, सरैडीह, मुस्टंगवा, टिकुलिया, धरतीमांडर, मोहनपुर, डोकवा, असेदेरी, अखरा, कमाल, विशनपुर, बजराही, लुकुईया, बुटकुइया, सोहरलाठ, कामत, फुलवरिया, बंठा, बलही, लकड़मंदा, खुशियाला, मांडरपट्टी, कुशुमभा, सरहुलपतरा, चितवातरी, नकरीमांडर, बजराही, मासनाही, बाचकुम, सीधाबारी, हरदियाटांड़, मांझीपारा, कारीमांडर समेत अन्य गांवों में सड़क नहीं है. ग्रामीणों ने कहा बनाशाम गांव निवासी मनोज वैद्य ने कहा कि 20 वर्षों से विधायक, सांसद व जनप्रतिनिधियों को वोट देते आ रहे हैं, लेकिन जनप्रतिनिधि चुनाव जीतने के बाद गांव की अनदेखी कर देते हैं. मांडरपट्टी गांव के मिथलेश कुमार ने कहा कि सड़क के अभाव में खेतों के बने मेढ़ से होकर आवागमन करते है. गांव तक बाइक व फोर व्हीलर नहीं पहुंच पाती है. ऐसे में बीमार लोग समय पर अस्पताल नहीं पहुंच पाते है, जिससे अब तक कई की मौत हो चुकी है.
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