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टीएसपीसी उग्रवादी अर्जुन गंझू गिरफ्तार

चतरा पुलिस ने लावालौंग थाना क्षेत्र के टिकदा गांव से टीएसपीसी उग्रवादी अर्जुन गंझू को गिरफ्तार किया है.

चतरा. चतरा पुलिस ने लावालौंग थाना क्षेत्र के टिकदा गांव से टीएसपीसी उग्रवादी अर्जुन गंझू को गिरफ्तार किया है. उसके पास से एक देसी लोडेड कट्टा व 723 जिंदा कारतूस जब्त किये गये. वह पूर्व में जेल गये टीएसपीसी संगठन के रीजनल कमांडर आक्रमण उर्फ रवींद्र गंझू का सहयोगी रह चुका है और टिकदा गांव का रहनेवाला है. एसपी सुमित कुमार अग्रवाल ने मंगलवार को समाहरणालय स्थित अपने कार्यालय कक्ष में प्रेस कांफ्रेंस में पूरे मामले की जानकारी दी. उन्होंने कहा कि गुप्त सूचना मिली थी कि अर्जुन गंझू के पास भारी मात्रा में गोली व हथियार है. सूचना के आलोक में छापामारी दल का गठन किया गया. टीम ने त्वरित कार्रवाई करते हुए छापेमारी की और उसे एक हथियार के साथ घर से गिरफ्तार कर लिया. उसकी निशानदेही पर टिकदा स्थित जंगल में जमीन के अंदर छिपाकर रखे गये एक इंसास राइफल के 477 जिंदा कारतूस व .303 राइफल की 246 राउंड जिंदा गोली जब्त बरामद की गयी. लावालौंग थाना में कांड संख्या 43/25 के तहत आर्म्स एक्ट व सीएलए एक्ट के तहत मामला दर्ज कर उसे जेल भेज दिया गया. गिरफ्तार अर्जुन का आपराधिक इतिहास रहा है. वह पूर्व में भी जेल जा चुका है. पूछताछ में उससे कई जानकारी मिली है. छापामारी टीम में लावालौंग थाना प्रभारी रूपेश कुमार, पुलिस अवर निरीक्षक सूर्य प्रताप सिंह, विधायक प्रसाद यादव के अलावा हवलदार वीरेंद्र प्रसाद, मखनलाल मरांडी, आरक्षी अजय कुमार शामिल थे. प्रेस कांफ्रेंस में सिमरिया एसडीपीओ शुभम खंडेलवाल उपस्थित थे. मालूम हो कि विगत दो मार्च को आक्रमण उर्फ रवींद्र गंझू सहित कई लोगों को भारी मात्रा में गोली व हथियार के साथ गिरफ्तार किया गया था. पुलिस को नुकसान पहुंचाने का किया था प्रयास: अर्जुन गंझू ने 22 साल पहले अपनी मौत की झूठी खबर फैलायी थी. उस वक्त भाकपा माओवादी व टीपीसी के बीच खूनी संघर्ष चल रहा था. हर रोज दोनों तरफ से लोग मारे जा रहे थे. इस बीच अर्जुन ने अपनी मौत की खबर फैलायी थी. तत्कालीन एसडीपीओ विनय भारती उसका शव उठाने टिकदा गांव पहुंचे, तब ग्रामीणों ने बताया कि अर्जुन जिंदा है. उसे जिंदा देख एसडीपीओ अचंभित हो गये. उसने माओवादियों के कहने पर पुलिस को घेरने व भारी नुकसान पहुंचाने को लेकर अफवाह फैलायी थी. एसडीपीओ सूझबूझ से काम लेते हुए लावालौंग के रास्ते नहीं, बल्कि पांकी के रास्ते से चतरा वापस लौटे थे. इस तरह पुलिस माओवादियों के मंसूबे पर पानी फेरा गया था. अर्जुन उस वक्त माओवादी संगठन में था.

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