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देवघर स्थित बाबाधाम के प्रांगण में विराजमान है सूर्य मंदिर, जानें क्या है इसका पौराणिक महत्व

12 ज्योतिर्लिंगों में से द्वादश ज्योतिर्लिंग बाबा बैद्यनाथ मंदिर व इनके प्रांगण की सभी मंदिरों का पौराणिक महत्व है. इनमें सर्वाधिक महत्व बाबा की पूजा के उपरांत भक्त मां शक्ति की मंदिर का हैं. भक्त देवी शक्ति की पूजा करने के बाद सृष्टि को प्रकाश देने वाले भगवान सूर्य की पूजा का अलग महत्व है. सुर्य नारायण के मंदिर में भक्त पूजा करने के लिए घण्टों कतार में लग कर नारायण की पूजा करते हैं.

देवघर (संजीव मिश्रा): 12 ज्योतिर्लिंगों में से द्वादश ज्योतिर्लिंग बाबा बैद्यनाथ मंदिर व इनके प्रांगण की सभी मंदिरों का पौराणिक महत्व है. इनमें सर्वाधिक महत्व बाबा की पूजा के उपरांत भक्त मां शक्ति की मंदिर का हैं. भक्त देवी शक्ति की पूजा करने के बाद सृष्टि को प्रकाश देने वाले भगवान सूर्य की पूजा का अलग महत्व है. सुर्य नारायण के मंदिर में भक्त पूजा करने के लिए घण्टों कतार में लग कर नारायण की पूजा करते हैं.

इस मंदिर का निर्माण पूर्व सरदार पंडा स्वर्गीय श्री श्री रामदत्त ओझा ने 1782 – 1793 के बीच किया था. यह मंदिर मुख्य मंदिर के दक्षिण पश्चिम कोने की तरफ स्थित है. सुर्य नारायण के मंदिर की लंबाई लगभग 15 फीट व चौड़ाई लगभग 25 फीट है. सूर्य नारायण के मंदिर पर शिखर नहीं है. यह गुंबद रहित मंदिर है. इसके ऊपर पंचशूल नहीं है. इस मंदिर की बनावट अन्य मंदिरो से छोटी अलग है.

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इस मंदिर में प्रवेश करने के लिए मंदिर प्रांगण से भक्त सूर्य नारायण के प्रांगण में पहुंचते है. सामने पीतल के दरवाजे को भक्त प्रणाम कर सिर झुका कर गर्भ गृह में पहुंचते हैं. जहां भगवान आदित्य, सूर्य नारायण की भव्य मूर्ति दर्शन होते हैं. जहां भगवान सूर्य नारायण कमल पर आसन मुद्रा में काले पत्थर की मूर्ति के रुप स्थापित है. 1976 -68 के दौरान भगवान सूर्य नारायण अतिप्राचीन मूर्ति चोरी हो गई थी.

इसके उपरांत सरदार पंडा स्वर्गीय श्री भवप्रितानंद ओझा द्वारा नयी मूर्ति स्थापित किया गए. यहां पर भक्तों वह पुजारी सभी के लिए प्रवेश व निकास द्वार का एक ही रास्ता है. इस मंदिर में ठाकुर परिवार की ओर से सूर्य नारायण की पूजा की जाती है. प्रत्येक रविवार को भगवान सूर्य नारायण की विशेष पूजा की जाती है. यहां पर भगवान सूर्य नारायण की वैदिक विधि से पूजा की जाती है. यहां भक्तों सालों भर सूर्य नारायण की पूजा कर सकते हैं.

कार्तिक मास शुक्ल पक्ष सप्तमी के छठ पूजा में अर्ध डालने के बाद भक्त भगवान सूर्य नारायण की पूजा करते हैं. इस मंदिर में प्रवेश करते ही तीर्थ पुरोहित ठाकुर परिवार के वंशज सूर्य नारायण के प्रांगण में अपने यजमान को संकल्प पूजा कराने के लिए अपने गद्दी पर रहते हैं.

Posted By: Pawan Singh

Prabhat Khabar Digital Desk
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