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Dhanbad News : नौकरी छोड़ने की वजह पूछने पर एके राय ने अपनी मां से कहा था-मजदूरों को हक दिलाना भी दूसरी आजादी की लड़ाई है

छोटे भाई डॉ तापस राय ने कहा- स्वतंत्रता सेनानी मां के पेंशन से चलता था घर, एके राय की नौकरी से घर में समृद्धि आने की थी उम्मीद

धनबाद के पूर्व सांसद एके राय की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में स्व राय के सबसे छोटे भाई 75 वर्षीय डॉ तापस राय भी धनबाद पहुंचे थे. श्री राय कोलकाता इंजीनियरिंग कॉलेज में प्राध्यापक थे. डॉ तापस चार भाई-बहनों में सबसे छोटे हैं. पूर्व सांसद अरुण कुमार राय) भाई-बहनों में सबसे बड़े थे. प्रभात खबर से बातचीत करते हुए श्री तापस पुराने दिनों को याद कर कहते हैं कि दादा (राय साहब) पर परिवार के सभी सदस्यों को नाज है. उनके घर की स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी. मां रेणुका राय स्वतंत्रता सेनानी थीं. उनको पेंशन मिलता था. उसी से घर चलता था. जब पढ़ाई कर एके राय सिंदरी नौकरी करने के लिए आये, तो घर के सभी लोगों को लगा कि अब घर की स्थिति सुधरेगी. परिवार का स्टेटस बढ़ेगा, लेकिन कुछ ही दिन बात पता चला कि उन्होंने नौकरी छोड़ दी. यह सुन मां ने पूछा कि यह क्या किया, तो उन्होंने कहा था कि तुम स्वतंत्रता सेनानी हो, स्वाधीनता संग्राम में भाग लिया, मजदूरों को हक दिलाना भी दूसरी आजादी की लड़ाई है, इसलिए मैं भी उसी रास्ते पर कूद गया हूं.

अपने नाम का कभी नहीं करने दिया इस्तेमाल :

डॉ तापस कहते हैं कि जब उनके बड़े भाई विधायक व सांसद बने, तो उन लोगों काफी गर्व हुआ. एक बार कोलकाता आवास पर आये तो सभी भाई-बहनों और बच्चों को बुलाया. सबने एक साथ खाना खाया. उन्होंने सबको कहा कि कभी भी उनके नाम का इस्तेमाल अपने काम के लिए नहीं करें. कहा था कि राजनीति देने के लिए होता है, पाने के लिए नहीं. यह भी कहा कि कहीं भी यह कह कर अपना महत्व नहीं बढ़ाना कि हम एके राय के परिजन हैं. अपना अस्तित्व खुद बनाने को कहा. कहते हैं कि स्वतंत्रता सेनानी परिवार से होने के कारण उन लोगों को पहले भी कोई लोभ नहीं था, पर उनकी बातों ने और सतर्क कर दिया. कभी ट्रेन का टिकट भी उनकी पैरवी से कन्फर्म नहीं कराया.

भत्ता-पेंशन नौकरी करने से मिलता है, हम सेवा कर रहे हैं :

प्रो तापस बताते हैं कि एक बार दुर्गा पूजा में मां को प्रणाम करने राय दा कोलकाता गये, तो बच्चों ने कहा कि जेठू (बड़े पापा) सरकार जो भत्ता या पेंशन दे रही है, वह तो ले लीजिये. इस पर बच्चों को समझाया कि राजनीति पूरी तरह जनसेवा है, यहां भत्ते की कोई जगह नहीं है. जो लोग भत्ता ले रहे हैं, वे समाजसेवा नहीं राजनीति में नौकरी तलाश रहे हैं और मैंने तो नौकरी छोड़ कर राजनीति तलाशी है. वह परिवार में हमेशा कहते थे कि “छेले-मेये राखे खूब पोढ़ाव, सेल्फ डिपेंडेड बानाओ” ( बच्चों को खूब पढ़ाओ और उन्हें आत्मनिर्भर बनाओ).

अच्छा रिजल्ट करने पर खुदीराम बोस की किताब गिफ्ट में दी थी :

तापस दा कहते हैं कि बड़े भैया से वह 15 साल छोटे हैं. उन्होंने परीक्षा में अच्छा रिजल्ट किया था, तो घर के सभी सदस्यों ने बहुत प्यार किया. राय दा ने उसी समय खुदीराम बोस की जीवनी से संबंधित किताब लाकर उनको दी. उन्होंने इस पर कहा कि मिस्टी मांगा, तो उन्होंने कहा कि पढ़ो और सीखो.

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