Prabhat Khabar Online Legal Counseling: धनबाद-भूमि, संपत्ति, दुर्घटनाओं के लिए बीमा कंपनियों से क्लेम और पारिवारिक विवादों में कानूनी रास्ता अपनाने से पहले आपसी सहमति से सुलझाने का प्रयास करना चाहिए. कई बार ऐसे मामले केवल बातचीत और समझौते से हल हो सकते हैं. अदालतों के चक्कर में पड़ने से समय और धन दोनों की हानि होती है. यह सुझाव रविवार को प्रभात खबर ऑनलाइन लीगल काउंसेलिंग के दौरान वरिष्ठ महिला अधिवक्ता रीतू सिंह ने दी. लीगल काउंसलिंग के दौरान धनबाद, बोकारो, गिरिडीह और कोडरमा से कई लोगों ने कानूनी सलाह ली.
माता-पिता से अलग रहने का दबाव बनाती है पत्नी
धनबाद से विकास रंजन का सवाल : मेरी पत्नी मुझ पर अपने माता-पिता से अलग रहने का दबाव बना रही है. मैं अपने माता-पिता का इकलौता पुत्र हूं, उनसे अलग नहीं रहना चाहता.
अधिवक्ता की सलाह : सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न उच्च न्यायालयों ने कई मामलों में कहा है कि यदि पत्नी अपने पति को माता-पिता से अलग रहने के लिए मजबूर करे, तो यह तलाक का आधार बन सकता है. अपने परिवार और ससुराल पक्ष के सदस्यों या सामाजिक वरिष्ठ व्यक्ति से मध्यस्थता करायें. अगर यहां समाधान नहीं मिले, तो फिर आप अदालत में वैवाहिक परामर्श के लिए आवेदन कर सकते हैं, जहां मेडिएशन सेंटर के माध्यम से दोनों पक्षों को सुनकर समाधान निकालने का प्रयास होता है. यह प्रक्रिया तलाक का हिस्सा नहीं होती, बल्कि रिश्ते को बचाने का एक वैधानिक माध्यम होती है.
बोकारो से रजनी वर्मा का सवाल : नौकरी की वजह से पति से मिलना कम हो पाता है. पति चाहते हैं कि मैं नौकरी छोड़ दूं. अन्यथा वह तलाक दे देंगे. मुझे अपनी शादी और नौकरी दोनों बचानी है.
अधिवक्ता की सलाह : आप हिंदू विवाह अधिनियम की धारा नौ के तहत विदाई का वाद दायर कर सकती हैं. इसमें अदालत पति को निर्देश दे सकती है कि वह पत्नी के साथ रहने और वैवाहिक संबंध बनाये रखे. इसके साथ ही परिवार न्यायालय में आवेदन देकर मध्यस्थता या परामर्श की प्रक्रिया शुरू कर सकती हैं. इससे रिश्ते को बचाने का प्रयास किया जा सकता है.
धनबाद से पूजा कुमारी का सवाल : शादी को आठ साल बाद पति का व्यवहार बदल गया है. मुझे संदेह है कि उनका किसी अन्य महिला से संबंध है. वह अपना फोन मुझे देखने नहीं देते और घर खर्च के लिए नियमित पैसा भी नहीं दे रहे हैं.
अधिवक्ता की सलाह : केवल शक के आधार पर कानून में कोई सीधा मामला नहीं बनता, लेकिन अगर पति का संबंध साबित होता है (उदाहरण के लिए गवाह, तस्वीरें, कॉल रिकॉर्ड्स आदि), तो यह मानसिक क्रूरता का आधार बनता है. आप अदालत में सीपी केस कर सकती हैं. जहां न्यायालय मामले को मेडिएशन सेंटर भेज देगा.
28 साल से अलग है फिर भी हिस्सा मांग रहा है बेटा
धनबाद से राजकुमार गुप्ता का सवाल : मेरा बड़ा बेटा पिछले 28 वर्षों से न तो मेरे साथ रहता है, न ही मेरे और मेरी पत्नी के भरण-पोषण में कोई सहयोग करता है. अब मेरी उम्र 78 वर्ष हो गयी है और वह संपत्ति में हिस्सा मांग रहा है. मैं उसे संपत्ति में हिस्सा नहीं देना चाहता.
अधिवक्ता की सलाह : यदि वह संपत्ति आपके पिता या दादा से आपको मिली है, तो आपके सभी पुत्रों का जन्म से हिस्सा है, भले ही वह आपके साथ न रहते हों, लेकिन अगर यह आपकी की खुद की अर्जित संपत्ति है, तो आप रजिस्टर्ड वसीयत बनवायें, इसमें आप साफ-साफ उल्लेख करें कि क्यों आप बड़े बेटे को हिस्सा नहीं देना चाहते. साथ ही वरिष्ठ नागरिक संरक्षण अधिनियम, 2007 भी प्रभावी है. यह कानून कहता है कि यदि कोई संतान अपने माता-पिता की सेवा और भरण-पोषण नहीं करती, तो वह संपत्ति का हकदार नहीं मानी जा सकती. आप अगर चाहें तो आप बेटा पर मेंटेंनेस के लिए केस कर सकते हैं, इसके लिए आपको डीएलएसए के माध्यम से नि:शुल्क वकील मिल जायेगा.
गिरिडीह से पंकज कुमार सवाल : मैं अपने एक मित्र को व्यवसाय के लिए ऑनलाइन 23 लाख रुपये उधार दिया था. इसका लिखित एग्रीमेंट भी है. अब वह मेरा पैसा नहीं लौटा रहा है. उसका दिया हुआ चेक भी बाउंस हो गया हैं. मैंने उसके खिलाफ थाना में धोखाधड़ी का केस किया है. साथ ही कोर्ट में केस कर दिया है. दूसरी ओर उसने जान से मारने की धमकी देने की लिखित शिकायत कर दी है.
अधिवक्ता की सलाह : आपने अपने स्तर से बेहतर कदम उठाया है, लेकिन आपको धैर्य रखना होगा. कोर्ट में अपना पक्ष रखने के लिए बेहतर वकील रखें. कोर्ट भी इस मामले में थाना को कार्रवाई करने का निर्देश देगी. आप चाहे तो अलग से अपने जो पैसा वापस पाने के लिए सिविल कोर्ट में एक मनी शूट दायर कर सकते हैं.
बोकारो से जितेन्द्र प्रजापति का सवाल : मैंने बैंक से 50 हजार रुपये का प्रधानमंत्री मुद्रा लोन लिया था. मैंने बैंक को पूरा पैसा लौटा दिया है. लेकिन अब भी लोन एनपीए दिखा रहा है.
अधिवक्ता की सलाह : आपने पूरा लोन चुका दिया है, तो जमा किए गये सभी किस्तों के साक्ष्य के साथ बैंक से नो ड्यूज प्रमाणपत्र की मांग करें. बैंक इसे देने के लिए बाध्य है. अगर बैंक के सिस्टम में गलती से लोन एनपीए दिख रहा है, तो बैंक को सिबिल ब्यूरो में सुधार रिपोर्ट भेजने के लिए कहें.
इन्होंने भी पूछा सवाल : तेनुघाट से आरएस यादव, बोकारो से परमित ने भी सवाल पूछा.