यूपी के गैंगस्टर अमन सिंह को धनबाद जेल में गोली मारने के आरोपी यूपी प्रतापगढ़ निवासी सुंदर महतो उर्फ रितेश यादव को प्रथम श्रेणी न्यायिक दंडाधिकारी नूतन एक्का की अदालत ने पहचान छुपाने व पुलिस को दिग्भ्रमित करने के मामले में तीन वर्ष की कैद व पांच हजार रुपये जुर्माना से दंडित किया है. रितेश यादव उर्फ सुंदर महतो के विरुद्ध पहचान छुपाने का आरोप लगाते हुए पुटकी थाना में 13 दिसंबर 2023 को प्राथमिकी दर्ज की गयी थी. इसके मुताबिक 25 नवंबर 2023 को पुलिस ने उसे डीएवी मैदान मुनीडीह से चोरी की बाइक के साथ पकड़ा गया था. उस वक्त रितेश यादव ने अपना नाम सुंदर महतो उर्फ नीतीश महतो और पता तेलो चंद्रपुरा, बोकारो बताया था. तीन दिसंबर 2023 को धनबाद जेल में अमन सिंह की हत्या होने के बाद जब पुलिस ने उसकी संलिप्तता इस हत्याकांड में पायी, तो पुलिस ने अमन सिंह हत्याकांड में सुंदर महतो का पुलिस रिमांड लिया. पुलिस रिमांड में इस बात का खुलासा हुआ कि सुंदर महतो उसका नाम नहीं है, बल्कि उसने अपनी पहचान छुपा कर पुलिस को दिग्भ्रमित किया था. बोकारो पुलिस ने भी जांच के बाद यह प्रतिवेदन दिया था कि तेलो चंद्रपुरा में सुंदर महतो पिता गुरु चरण महतो नाम का कोई आदमी नहीं है. उसका वास्तविक नाम रितेश यादव और पता चारंगपुर जिला प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश था.
अभिषेक के आवेदन को एफआइआर नहीं माना जा सकता बचाव पक्ष :
पूर्व डिप्टी मेयर व कांग्रेस नेता नीरज सिंह समेत चार लोगों की हत्या मामले में बीते आठ वर्षों से जेल में बंद झरिया के पूर्व विधायक संजीव सिंह की ओर से बहस शुरू हुई. झारखंड उच्च न्यायालय के अधिवक्ता मिलन दे ने अदालत में तर्क देते हुए कहा कि नीरज सिंह की हत्या की सूचना मिलते ही सरायढेला थाना प्रभारी अरविंद कुमार मौके पर पहुंच गये थे, जहां उन्होंने जांच शुरू कर दी थी. वहां से गोली का खोखा, ब्लड सैंपल अन्य चीजें जब्त की. वहीं मृतकों की मृत्यु समीक्षा रिपोर्ट भी बना ली. उपायुक्त धनबाद ने एसडीएम, एसएसपी व सिविल सर्जन को पत्र लिखकर रात में ही पोस्टमार्टम करने का निर्देश दिया था, तो जब अनुसंधान शुरू हो गया था, उसके दो दिनों के बाद अभिषेक सिंह द्वारा थाने में लिखित आवेदन दिया गया. जांच के दौरान दिया गया इसे एक आवेदन माना जा सकता है प्राथमिकी नहीं. अधिवक्ता ने यह सवाल भी उठाया कि मृत्यु समीक्षा रिपोर्ट पर अभिषेक सिंह व शिवम सिंह का हस्ताक्षर था फिर भी एफआईआर नहीं की गयी. 23 तारीख को की गई एफआईआर संदेहास्पद है और कानून की दृष्टि में मानने योग्य नहीं है. कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि सबसे अच्छा व्यक्ति ही जब लिखित रूप से आवेदन देगा तो एफआईआर दर्ज की जाएगी. घटना के होने के तुरंत बाद ही सरायढेला थाना प्रभारी अरविंद कुमार मौके वारदात पर पहुंच गए थे. सनहा दर्ज किया था. पोस्टमार्टम की गई थी. उसे ही एफआईआर क्यों नहीं माना जाना चाहिए. अदालत ने बचाव पक्ष को बहस करने के लिए पुनः 26 जुलाई की तारीख निर्धारित की है. इसके पूर्व अभियोजन द्वारा गवाह कुंदन सिंह का प्रतिपरीक्षण किया गया.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है