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Dhanbad News : विजय दिवस पर बीसीसीएल के रिटायर अधिकारी ने साझा की अपने सैनिक पिता की यादें

बांग्लादेश की शिकस्त के बाद पाकिस्तान की बौखलाहट बढ़ती जा रही थी, पाकिस्तान भारत से युद्ध चाह रहा था. जब अपनी शक्ति पर ज्यादा घमंड हो जाता है, तब अक्सर युद्ध करने का मन होता है.

वर्ष 1971, भारतीय सेना ने पाकिस्तान के खिलाफ ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी. सेना के जज्बे को सलाम करते हुए हम 16 दिसंबर का दिन विजय दिवस के रूप में मनाते है. इसके बाद पूर्वी पाकिस्तान स्वतंत्र हुआ. इसे आज हम बांग्लादेश के नाम से जानते हैं. मेरे लिए यह दिन विशेष इसलिए भी है, क्योंकि मेरे पिता स्व कल्याण कुमार चटर्जी भारत-पाक युद्ध में एक सैनिक के रूप में शामिल थे. हमारा परिवार छह माह पहले ही शिमला के डलहौजी में सैनिक आवास में तबादला होकर गया था. मेरी उम्र कोई 10-11 वर्ष था. अचानक एक शाम पाकिस्तान ने युद्ध का अल्टीमेटम दे दिया. पिताजी कहते थे बांग्लादेश की शिकस्त के बाद पाकिस्तान की बौखलाहट बढ़ती जा रही थी, पाकिस्तान भारत से युद्ध चाह रहा था. जब अपनी शक्ति पर ज्यादा घमंड हो जाता है, तब अक्सर युद्ध करने का मन होता है. पिताजी कल्याण कुमार चटर्जी भी सीमा पर जाने की तैयारी में जुट गये. मां (मंजु चटर्जी) वीर पत्नी की तरह मन में भय पर, चेहरे पर मुस्कुराहट लिए पिताजी को रवाना किया. खतरे का सायरन बज उठा. पूरा शहर ब्लैक आउट कर दिया गया. मुझे याद है, कुछ फौजी हमारे घर आये और बत्ती न जलाने की हिदायत दे गये. पाकिस्तान आक्रमण कर चुका था. पठानकोट से आगरा तक बम बरसाये गये. बम गिरते ही हमारे दरवाजा-खिड़कियां कांप उठती थी. हम भाई (इंद्रजीत) बहन (सविता) मां से चिपक जाते. भयानक अनुभव.

शेर की दहाड़ के साथ पाकिस्तान के सामने था भारत :

भारत भी शेर की दहाड़ के साथ पाकिस्तान के सम्मुख था. भारत ने तोपों के मुंह खोल दिये थे. मां मंजू चटर्जी कहती थीं, कुछ चीजे समय और प्रभु पर छोड़ देना चाहिए. हमसे छुप-छुपाती आंखों से आंसू भी पोंछती. इंदिरा गांधी जीत का आश्वासन दे चुकी थीं. भारत विजयी हुआ. नतीजा पूर्वी पाकिस्तान आजाद हुआ. बांग्लादेश के रूप में नया देश बना. 13 दिनों की लड़ाई के बाद पिताजी वापस आये. आज भी याद है मां की आंखों से अविरल आंसू बह रहे थे. पर वे खुशी के आंसू थे. युद्ध के दौरान पिताजी के पांव में गोली लगी थी.

लेखक अभिजीत चटर्जी बीसीसीएल के रिटायर्ड अधिकारी हैं.B

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