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झारखंड में भी हो विश्वविद्यालय सेवा आयोग की स्थापना : डॉ धनंजय

राज्य की उच्च शिक्षा व्यवस्था दोहरी पीड़ा से गुजर रही है. पहला तो नियुक्ति का अभाव और दूसरी प्रोन्नति की प्रतीक्षा. विश्वविद्यालयों में नियमित रूप से सहायक प्राध्यापकों की नियुक्तियां नहीं हो सकीं.

दुमका. झारखंड राज्य को अस्तित्व में आये लगभग 25 वर्ष हो चुके हैं, परंतु उच्च शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर जो बुनियादी संस्थागत ढांचा होना चाहिए था, वह अब तक पूर्णतः विकसित नहीं हो सका है. विशेषतः विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति और प्रोन्नति को लेकर जो शिथिलता, अस्पष्टता और अव्यवस्था बनी है. वह किसी भी संवेदनशील शासन तंत्र के लिए चिंता का विषय होनी चाहिए. ऐसी परिस्थिति में स्वतंत्र विश्वविद्यालय सेवा आयोग की स्थापना अब केवल आवश्यकता नहीं, बल्कि अनिवार्यता बन गयी है. यह कहना है एसकेएम विश्वविद्यालय एनएसएस समन्वयक डॉ धनंजय कुमार मिश्र का. उनका कहना है कि आज राज्य की उच्च शिक्षा व्यवस्था दोहरी पीड़ा से गुजर रही है. पहला तो नियुक्ति का अभाव और दूसरी प्रोन्नति की प्रतीक्षा. विश्वविद्यालयों में नियमित रूप से सहायक प्राध्यापकों की नियुक्तियां नहीं हो सकीं. कई विभाग मात्र अतिथि अथवा संविदा शिक्षकों के भरोसे चल रहे हैं. वहीं दूसरी ओर, जो शिक्षक वर्षों से सेवा दे रहे हैं, वे अपनी प्रोन्नति के न्यायसंगत अधिकार से वंचित हैं. अनेक मामलों में 15 से 20 वर्षों तक कार्य कर चुके शिक्षकों को अब तक एसोसिएट या प्रोफेसर पद का लाभ नहीं मिल सका है, जबकि उन्होंने पीएचडी, शोध-पत्र, मूल्यांकन, पाठ्यक्रम निर्माण जैसे सभी अकादमिक योग्यता मानदंड पूर्ण कर लिया है. डॉ मिश्र ने कहा है कि इस स्थिति के लिए प्रमुख कारण है, पहला तो झारखंड लोक सेवा आयोग पर अत्यधिक कार्यभार और सुस्त कार्यशैली. दूसरा सिविल सेवा, अभियंत्रण, चिकित्सा, तकनीकी पदों के साथ-साथ विश्वविद्यालयों के शिक्षकों की नियुक्ति और प्रोन्नति जैसे जटिल अकादमिक कार्य एक ही आयोग से कराना न तो व्यावहारिक है, न ही न्यायसंगत. बीते वर्षों में आयोग की निष्क्रियता, परिणामों में देरी, विवादों, पुनः परीक्षाओं और भ्रष्टाचार के आरोपों ने आयोग की विश्वसनीयता को भी गम्भीर रूप से प्रभावित किया है. उन्होंने कहा है कि बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, जैसे अनेक राज्यों में विश्वविद्यालय सेवा आयोग लंबे समय से कार्यरत हैं, जो सूजीसी मानकों के अनुरूप विश्वविद्यालयों में पारदर्शी, योग्यता-आधारित और समयबद्ध नियुक्ति व प्रोन्नति की प्रक्रिया को सुनिश्चित करते हैं. ऐसे आयोग न केवल शिक्षकों का मनोबल बढ़ाते हैं, बल्कि विश्वविद्यालयों में शिक्षण, शोध और नवाचार की गुणवत्ता को भी सुदृढ़ करते हैं. कहा है कि झारखंड सरकार को चाहिए कि वह इस विषय को तात्कालिक प्राथमिकता में रखे और “झारखंड विश्वविद्यालय सेवा आयोग अधिनियम ” लाकर स्वायत्त, निष्पक्ष और सशक्त आयोग का गठन करे. यह आयोग नियुक्तियों के साथ-साथ शिक्षकों की प्रोन्नति प्रक्रिया को भी समयबद्ध और योग्यता-सापेक्ष बनाए.

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