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नक्शा पारित किये बिना बन रहे संताल में मकान, न लोगों में है जागरूकता, न निकाय दे रही दबिश

अक्सर बिना नक्शा पारित किये मकान बनाने से जलापूर्ति से लेकर दूषित जल की निकासी को लेकर परेशानी पैदा होती है. कई अलग तरह के विवाद पैदा होते हैं सो अलग. एक बड़ी बात, स्थानीय निकाय को राजस्व का भी भारी-भरकम नुकसान होता है.

आनंद जायसवाल, दुमका. संताल परगना में अब भी बिना नक्शा पारित कराये धड़ल्ले से इमारतें बनायी जा रहीं हैं. जैसे-तैसे भवन बनाये जा रहे हैं, जो बाद में निकाय प्रशासन के लिए परेशानी का कारण तो बनती ही है, आसपास के इलाके में बसे लोगों के लिए भी परेशानी पैदा होती है. अक्सर बिना नक्शा पारित किये मकान बनाने से जलापूर्ति से लेकर दूषित जल की निकासी को लेकर परेशानी पैदा होती है. कई अलग तरह के विवाद पैदा होते हैं सो अलग. एक बड़ी बात, स्थानीय निकाय को राजस्व का भी भारी-भरकम नुकसान होता है. संताल परगना की ही बात की जाए, तो देवघर नगर निगम हर साल बिल्डिंग प्लान एप्रूवल देकर ही एक से सवा करोड़ रुपये तक का राजस्व प्राप्त करता है. आठ साल में देवघर नगर निगम ने लगभग साढ़े नौ करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त किया है, तो मधुपुर नगर परिषद ने सत्तर लाख रुपये का राजस्व प्राप्त किया है. पाकुड़ ने भी 45 लाख रुपये के राजस्व की प्राप्ति की है. दुमका नगर परिषद ने भी आठ-नौ साल में बिल्डिंग प्लान एप्रूवल के नाम पर 93 लाख रुपये का राजस्व प्राप्त करने में सफलता पायी है, लेकिन सच्चाई यही है कि ये निकाय सख्त हों, तो ने केवल वैधानिक तरीके से भवन का निर्माण लोग करेंगे, बल्कि निकाय के राजस्व संग्रहण में भी तेजी होगी. इसके अलावा जो सबसे अहम लाभ होगा, वह है टाउन प्लानर के अनुरूप शहर का बेहतर व व्यवस्थित ढंग से विकास. बता दें कि अब ग्रामीण क्षेत्र के लिए संबंधित जिला परिषद को भी नक्शा पारित करने के अधिकार दिये गये हैं. बात दुमका की हो या साहिबगंज, पाकुड़, देवघर, गोड्डा या जामताड़ा की, कहीं भी ऐसे निकाय ने सक्रियता नहीं दिखायी है.

रजिस्टर्ड प्लाॅट न होना भी एक बड़ा कारण :

बिना नक्शा पारित कराये घर और अपार्टमेंट बनाये जाने की एक बड़ी वजह संताल परगना में रजिस्टर्ड यानी बसौड़ी जमीन का न होना भी है. अधिकांश निकाय क्षेत्रों में जो मकान बन रहे, उनमें से 80 फीसद का निर्माण जमाबंदी जमीन पर ही हो रहा है. ऐसे जमीन पर मकान बनाने के प्रस्ताव पर निकाय नक्शा पारित नहीं करती है.

हाल के दिनों में राज्य में विवाद में फंस चुके हैं कई अधिकारी :

जमीन संबंधित विवाद में झारखंड में कई अधिकारियों की मुश्किलें बढ़ी हैं, ऐसे में कई अधिकारी ऐसे बिल्डिंग प्लान पर मुहर लगाने से बच रहे हैं. हालांकि इसकी जो प्रक्रिया है, उसमें संबंधित आवेदक के पास जमीन से संबंधित पूरे दस्तावेज, सेल डीड, म्युटेशन, होल्डिंग और एलबीसी होनी चाहिए. ये दस्तावेज रहने पर ही आवेदन की प्रक्रिया आगे बढ़ती है.

बिना नक्शा पारित किए भवन बनाने से कई नुकसान हो सकते हैं:

कानूनी समस्याएं: बिना नक्शा पारित किए भवन बनाने पर स्थानीय प्रशासन द्वारा नोटिस जारी किया जा सकता है और आपको भवन को तोड़ने या बदलाव करने का आदेश दिया जा सकता है.

सुरक्षा जोखिम: बिना उचित योजना और नक्शे के भवन बनाने से संरचनात्मक सुरक्षा जोखिम बढ़ सकता है, जिससे भवन के ढहने या अन्य दुर्घटनाओं का खतरा हो सकता है.

आर्थिक नुकसान: यदि भवन को तोड़ने या बदलाव करने का आदेश दिया जाता है, तो आपको आर्थिक नुकसान हो सकता है, क्योंकि आपको फिर से निर्माण या बदलाव करना पड़ सकता है.

भवन का अवैध होना: बिना नक्शा पारित किए बना भवन अवैध माना जा सकता है, जिससे आपको भवन के लिए आवश्यक सुविधाएं जैसे कि बिजली, पानी, और गैस कनेक्शन नहीं मिल सकते हैं.

भविष्य में बिक्री में समस्या: बिना नक्शा पारित किए बने भवन को भविष्य में बेचने में समस्या हो सकती है, क्योंकि खरीदार ऐसे भवन को खरीदने से हिचक सकते हैं जिसकी वैधता संदिग्ध हो.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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