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बाबा फौजदारीनाथ दरबार में दस महाविद्याओं की भी होती है पूजा-अर्चना

दसों महाविद्याओं के मध्य बसे हैं बाबा फौजदारीनाथ. दस महाविद्याओं की साधना विशेष तांत्रिक विधियों और मंत्रों के साथ दक्ष साधकों या विद्वान पंडितों द्वारा की जाती है.

बासुकीनाथ. बाबा फौजदारीनाथ के दरबार में जलार्पण के साथ-साथ श्रद्धालु दस महाविद्याओं की अधिष्ठात्री देवियों की भी पूजा-अर्चना करते हैं. इन देवियों में माता काली, तारा, षोडशी, त्रिपुरसुंदरी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्तिका, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी शामिल हैं. इन्हें शक्ति की दस महाविद्याओं के रूप में जाना जाता है. मंदिर प्रांगण में इन देवियों के मंदिर स्थित हैं, जहां श्रद्धालु विशेष रूप से परिवार की सुख-समृद्धि और इच्छापूर्ति के लिए पूजा करते हैं. दस महाविद्याओं की साधना विशेष तांत्रिक विधियों और मंत्रों के साथ दक्ष साधकों या विद्वान पंडितों द्वारा की जाती है. पंडित मोहनानंद झा के अनुसार, मां दुर्गा के इन दस रूपों की आराधना करने वाला साधक सभी भौतिक सुखों को प्राप्त कर जीवन के बंधनों से मुक्त हो सकता है. तांत्रिक साधना द्वारा देवी को प्रसन्न किया जाता है, किंतु मंत्रों का बिना ज्ञान उपयोग करना हानिकारक सिद्ध हो सकता है. इन दस महाविद्याओं के अतिरिक्त मंदिर परिसर में भगवान विष्णु, राम दरबार, माता दुर्गा, माता अन्नपूर्णा सहित अन्य देवी-देवताओं के मंदिर भी स्थित हैं. सावन के अतिरिक्त अन्य महीनों में भी यहां श्रद्धालु दर्शन हेतु आते रहते हैं. यहां शिव और शक्ति की उपासना का अद्भुत संगम देखने को मिलता है. ऐसा माना जाता है कि यहां केवल दर्शन मात्र से ही जीवन की बाधाएं दूर होती हैं और कार्यों में सफलता प्राप्त होती है. दीपावली, दशहरा, भाद्रपद अमावस्या सहित अन्य पर्वों पर देश-विदेश से भक्त यहां पहुंचते हैं. भोलेनाथ के पूजन उपरांत शक्ति की आराधना से श्रद्धालु मनोवांछित फल प्राप्त करते हैं.

दस महाविद्याओं की उत्पत्ति: देवी सती के दस रूपों से जुड़ी है कथा :

पंडित सुधाकर झा के अनुसार, देवी भागवत पुराण में उल्लेख मिलता है कि दस महाविद्याओं की उत्पत्ति देवी सती और भगवान शिव से जुड़ी हुई है. कथा के अनुसार, सती के पिता दक्ष प्रजापति ने भगवान शिव का अपमान करने के उद्देश्य से एक यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया गया. जब सती को यह ज्ञात हुआ, तो उन्होंने यज्ञ में जाने की जिद की. शिव ने मना किया, लेकिन सती नहीं मानीं. अंततः, जब शिव ने अनसुना किया तो सती ने अपना काली रूप धारण किया, जिसे देखकर शिव भयभीत हो गए और वहां से जाने लगे. भगवान शिव को रोकने के लिए सती ने दस दिशाओं में दस अलग-अलग रूपों में अवतार लिया. यही दस रूप कालांतर में दस महाविद्याएं कहलाए. हर रूप एक दिशा और एक शक्ति की प्रतीक मानी जाती है. यह महाविद्याएं शक्ति उपासना और तांत्रिक साधना में अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती हैं.

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