मुसाबनी.
सावन का महीना भगवान शिव को प्रिय है. इस महीने में महादेव की पूजा व जलाभिषेक का खास महत्व है. श्रद्धालु सामर्थ्य अनुसार व्रत, उपवास, पूजन, अभिषेक आदि से भगवान शिव को प्रसन्न करते हैं. मान्यता है कि इसका विशेष फल मिलता है. पूर्वी सिंहभूम जिले के मुसाबनी प्रखंड में शंख और सुवर्णरेखा नदी के संगम स्थल देवली गांव में बाबा देवलेश्वर शिव मंदिर है. इस क्षेत्र के लोगों के लिए आस्था का केंद्र है. सावन में शिव भक्त दूर-दूर से आकर शंख नदी से कांवर में जल उठाकर बाबा का जलाभिषेक करते हैं. भक्तों के अनुसार, सच्चे मन से बाबा देवलेश्वर की पूजा से हर मनोकामना पूरी होती है.महाभारत काल से जुड़ा है मंदिर का इतिहास
यह मंदिर महाभारतकालीन माना जाता है. पूर्व में मंदिर विशेष पत्थर से निर्मित था, जिसके भग्नावशेष आज भी मौजूद हैं. वर्तमान मंदिर का निर्माण 1978 में ग्रामीणों ने किया. किंवदंती के अनुसार, जयद्रथ ने पांडवों का विनाश के लिए यहीं पर भगवान शिव की तपस्या की थी. उनसे वरदान पाया कि एक दिन वह अर्जुन को छोड़कर शेष पांडवों को परास्त कर सकता है. महाभारत में इसी वरदार की वजह से चक्रव्यूह की रचना कर अभिमन्यु का वध किया गया.
खुदाई में आज भी मूर्तियां मिलती हैं
पुत्र वियोग से अर्जुन ने शपथ ली कि कल का सूर्यास्त जयद्रथ नहीं देख पायेगा. इससे डरकर जयद्रथ अपने पिता के पास पहुंचा, जो उस वक्त शंख एवं सुवर्णरेखा नदी के संगम स्थल देवली में तपस्या कर रहे थे. अगले दिन भीषण युद्ध होता है. सभी कौरव योद्धा जयद्रथ की रक्षा में लगे रहते हैं. अर्जुन द्वारा जयद्रथ के संहार के लिए तीर चलाया जाता है. उक्त तीर मंदिर के पास गिरा है. ग्रामीणों की मान्यता के अनुसार उक्त तीर यहां विद्यमान है. खुदाई में अभी भी यहां शिवलिंग एवं अन्य देवी देवताओं की मूर्तियां मिलती हैं. मान्यता के अनुसार संसार के उद्धारक शिव इस जगह विद्यमान है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है