बहरागोड़ा.
बहरागोड़ा प्रखंड में सुवर्णरेखा नदी के तटीय इलाका ऐतिहासिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है. कई राजवंशों से जुड़े अवशेष इस क्षेत्र से प्राप्त होते रहते हैं. कुछ के अवशेष विद्यमान हैं, तो कुछ सुवर्णरेखा में समा गये हैं. ऐसा ही ऐतिहासिक अवशेष और धरोहर बहरागोड़ा की मोहुलडांगरी का कामेश्वर शिव मंदिर है. जानकारों के मुताबिक व प्रचलित लोक कथा के अनुसार, वर्तमान सुवर्णरेखा नदी के मध्य में कामारआड़ा नामक गांव लगभग 2500 वर्ष पूर्व था. कलिंग विजय अभियान के क्रम में सम्राट अशोक ने इसी गांव में छावनी लगायी थी. उसी दौरान सम्राट अशोक ने शिवलिंग स्थापना कर पूजा शुरू की. उसके बाद पाल वंश के शासन काल में उक्त मंदिर की सजावट की गयी. वर्ष 1912 में आयी बाढ़ के बाद धीरे-धीरे 1920 में मंदिर विलुप्त हो गयी. बाढ़ आने के कारण नदी इस पार मोहुलडांगरी गांव का निर्माण हुआ. उक्त शिवलिंग को मोहुलडांगरी में लाकर स्थापित किया गया था. लगभग 100 वर्ष पूर्व उक्त शिवलिंग के जगह पर कामेश्वर शिव मंदिर का निर्माण कराया गया, जो आज मुख्य आस्था का केंद्र है. सावन महीने में यहां विशेष पूजा और जलाभिषेक होता है. सोमवारी के दिन काफी भीड़ उमड़ती है.गाजन पर्व का महत्व
चैत्र मास में मनाया जाने वाला गाजन पर्व मंदिर की प्राचीनता और श्रद्धा का प्रमाण है. भक्त अपनी जीभ में त्रिशूल भोंपते हैं और नदी स्नान कर जलाभिषेक करते हैं. यह कठोर तपस्या और वीरता की परंपरा है. यहां एक अनूठी मान्यता है, जिसमें मंदिर के लिए विशेष मिट्टी चोरी कर लायी जाती है, जो शिव को अर्पित की जाती है. यह ओडिशा-झारखंड की सीमा के विवादों और संस्कृति के समन्वय को दर्शाती है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है