हाता. भारतीय इतिहास ने भूमिज विद्रोह के उचित न्याय नहीं किया. घटना को वह स्थान नहीं मिल सका, जो मिलना चाहिए था. वीर गंगानारायण सिंह के आंदोलन ने अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिये थे. उन्होंने अपनी मां, माटी, आत्म-सम्मान व परंपराओं की रक्षा के लिए अंग्रेजों के आगे सिर नहीं झुकाया. अंग्रेजों ने उनकी गिरफ्तारी या हत्या के लिए इनाम की घोषणा की थी. गंगा नारायण सिंह का जन्म 25 अप्रैल, 1790 को बराभूम के बांधडीह नामक ग्राम (सरायकेला-खरसावां जिला के नीमडीह प्रखंड में) हुआ था. बराभूम राज उत्तराधिकारी कानून के अड़चन में फंसे उनके पिता लक्ष्मण सिंह को अंग्रेजों ने उत्तराधिकारी से वंचित कर दिया गया. लक्ष्मण सिंह ने अंग्रेजों के विरोध में लड़ाई लड़ने की ठानी. इस कारण कैप्टन फार्गुसन ने उन्हें गिरफ्तार कर मेदिनीपुर जेल में बंद कर दिया. जहां उनकी मौत हो गयी. चचेरे भाई की हत्या से शुरू किया विद्रोह गंगानारायण सिंह ने अंग्रेजों के पिट्टू सह क्रूर, लालची व सूदखोर अपने चचेरे भाई दीवान माधव सिंह की हत्या से विद्रोह की शुरुआत की. 25 अप्रैल, 1832 को गंगानारायण ने बांधडीह गांव में क्षेत्र के तमाम सरदार, जमींदार, घाटवाल, दीगार, नायक व पाइको की बैठक बुलायी. तय हुआ कि जंगल महल क्षेत्र से अंग्रेजों को खदेड़ दिया जाये. इसके लिए सरदार वाहिनी गठन कर आंदोलन शुरू किया गया. छापामार युद्ध में ब्रिटिश के 19 जवानों को मार गिराया 14 मई को बराह बाजार कैंप पर आक्रमण किया. मेदिनीपुर के कमिश्नर मेक डार्लेन ने गंगानारायण सिंह को पकड़ने वाले को एक हजार रुपये इनाम देने की घोषणा की. 2 जून 1832 को कैप्टन मार्टिन के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना ने बांधडीह पर हमला किया. 4 जून को बेड़ादा और आसपास के गांव जला दिये. गंगानारायण सिंह दलमा के जंगल में छिप गये. वहां से छापामार युद्ध में ब्रिटिश के 19 जवानों को मार गिराये. हल्दीपोखर में अंग्रेज भक्त दिगार की हत्या की 25 जुलाई 1832 को कुइलापाल के बहादुर सिंह से सहायता लेकर एक हजार वाहिनी के साथ पूंडा पर आक्रमण किया. अंबिकापुर, ओंकरो, रायपुर, सुबोलए कुईलापाल, श्यामसुंदरपुर, फुलकुसमा में आक्रमण किया. इस विद्रोह को अंग्रेजों ने गंगानारायण सिंह का चुहाड़ विद्रोह या गंगानारायण सिंह का हंगामा करार दिया. गंगा नारायण ने बराभूम व काशीपुर में बलरामपुर थाना पर आक्रमण किया. इसके बाद लगातार विद्रोह चलता रहा. सात जनवरी, 1833 को हल्दीपोखर (पोटका) इलाका में गंगानारायण सिंह ने बांधडीह जुड़ी के गार्दी मुड़ा के सहयोग से अंग्रेज भक्त दिगार की हत्या कर दी. धुसा सरदार-जंगलु सरदार को अंग्रेजों ने फांसी दी पोटका के दो वीर सारसे-बुरूहातु के रहनेवाले घुसा सरदार व जंगलु सरदार तथा बांधडीह जुड़ी के गार्दी मुड़ा गंगानारायण सिंह के सहयोगी बने. अंग्रेजों ने गार्दी मुड़ा का घर जला दिया. घुसा व जंगलु को देवली ग्राम थान में पेड़ पर फांसी दी. सात फरवरी, 1833 को वीरगति को प्राप्त हुए गंगानारायण सिंह पोटका (हल्दीपोखर) होते हुए लड़का कोलो (हो) से सहयोग के लिए 15 जनवरी 1833 (आखाना यात्रा के दिन) को कोल्हान पहुंचे. सात फरवरी 1833 को कुछ सरदारों के साथ खरसावां के हिंदू शहर की ओर बढ़े. ठाकुर व गंगानारायण सिंह के सैनिकों के साथ भिड़ंत हुई. इसमें ठाकुर के तीन सिपाही को मारा और 13 को घायल करते हुए वीरगति प्राप्त की. ठाकुर चैतन्य सिंह ने अंग्रेज सेनापति विलकिन्सन के एक हजार रुपये के इनाम, खरसावां की जमींदारी सुरक्षित व अंग्रेजी हुकूमत की भक्ति का परिचय देते हुए गंगानारायण सिंह का सिर कर्नल डाल्टन को भेंट कर दिया.
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