चाकुलिया.
बांस व्यवसाय के लिए पूरे झारखंड में चाकुलिया प्रसिद्ध है. बरसात का मौसम आते ही बांस का व्यवसाय लगभग ठप हो जाता है. इसका कारण है कि बरसात के मौसम में किसान बांसों की कटाई बंद कर देते हैं, जिससे व्यवसायी तक बांस नहीं पहुंचता है. सितंबर माह तक बांसों की खरीद-बिक्री लगभग बंद हो जाती है. जुलाई से सितंबर माह तक बांसों का प्रजनन काल होता है. चाकुलिया के आस-पास के जंगलों में हाल के दिनों में बांस के नये-नये पौधे आसानी से देखे जा सकते हैं. वर्तमान समय में बांसों में नयी कोंपलें निकलनी शुरू हो गयी हैं. इन्हें राइजोम कहा जाता है. किसानों का मानना है कि बांसों की कटाई के दौरान निकलने वाले नये पौधे नष्ट हो सकते हैं. नये पौधों को नष्ट होने से बचाने के लिए ही बरसात के महीने में बांस की कटाई बंद रहती है. इस दौरान एक बांस की जड़ से कम से कम चार नये पौधे निकलते हैं.प्रतिवर्ष पांच करोड़ बांस का होता है उत्पादन
चाकुलिया वन क्षेत्र अंतर्गत चाकुलिया, धालभूमगढ़ व बहरागोड़ा में लगभग 25 हजार एकड़ भूमि पर बांस के पौधे लगे हैं. वन विभाग की मानें, तो प्रति एकड़ 2 हजार बांस का उत्पादन होता है. एक आकलन के मुताबिक, चाकुलिया में प्रतिवर्ष 5 करोड़ के बांस का उत्पादन होता है.
चाकुलिया के लोगों के लिए नकदी फसल है बांस
लंबे समय से चाकुलिया में बांस का व्यवसाय फल-फूल रहा है. चाकुलिया, बहरागोड़ा व धालभूमगढ़ क्षेत्र के लगभग हजारों लोग बांस के व्यवसाय से जुड़े हैं. क्षेत्र में बांस को कैश क्रॉप (नगदी फसल) के नाम से जाना जाता है. जब भी ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को घर बनाने, बेटियों का विवाह करने व मरीजों का इलाज कराने के लिए पैसों की आवश्यकता होती है, वे बांस बेचकर इसकी व्यवस्था करते हैं. जमशेदपुर एवं रांची समेत देश के कोने-कोने में चाकुलिया से बांस भेजा जाता है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है