गालूडीह.
सावन का महीना भगवान शिव को प्रिय है. इस महीने में महादेव की पूजा व जलाभिषेक का खास महत्व है. श्रद्धालु सामर्थ्य अनुसार व्रत, उपवास, पूजन, अभिषेक आदि से भगवान शिव को प्रसन्न करते हैं. मान्यता है कि इसका विशेष फल मिलता है. पूर्वी सिंहभूम जिले में घाटशिला प्रखंड की सबसे बीहड़ पंचायत झाटीझरना के काशीडांगा गांव के पास पहाड़ों के बीच ऐतिहासिक शिवालय है. सावन में यहां बंगाल, ओडिशा, बिहार, झारखंड के विभिन्न हिस्सों से शिवभक्त आते हैं. मंदिर कमेटी के रामकृष्ण महतो, ग्राम प्रधान रामपद हेंब्रम, संजय मार्डी, पानदास हेंब्रम, कृतिवास महतो आदि ने इस बार सावन में विशेष तैयारी की है. यहां आदिवासी पुजारी की परंपरा सदियों पुरानी है. आदिवासी समाज भी मारांगबुरू (शिव भगवान) की यहां पूजा करता है.1936 में हल जोतने के समय मिला था शिवलिंग
बताया जाता है कि वर्ष 1936 में खेत में हल जोतते समय शिवलिंग मिला था. उक्त क्षेत्र जंगल-झाड़ियों से ढंका था. ग्रामीणों ने सफाई करायी. इसके बाद झोपड़ीनुमा मंदिर बनवाया. पागला नंद नामक साधु ने 1938 में ग्रामीणों के साथ पहली बार पूजा की. उस समय साल में एक बार चड़क पूजा के समय पूजा होती थी. धीरे-धीरे पूजा के लिए ब्राह्मण आने लगे. मंदिर की साफ-सफाई ग्रामीण खुद करते हैं. हपना हेंब्रम पुजारी बने. उनके बाद सोम हेंब्रम पुजारी बने. इनके बाद चंद्र हेंब्रम पूजा कराते हैं.
पहाड़ की गोद में बसा है मंदिर
मंदिर के चारों तरफ पहाड़ है, जो अद्वितीय दृश्य बनाता है. यहां मंत्री रामदास सोरेन कई बार पहुंचे हैं. उन्होंने कहा कि मंदिर को देवघर के तर्ज पर विकसित करेंगे. यहां विश्रामागार, शौचालय, मंदिर तक पीसीसी सड़क, लाइट, पानी की व्यवस्था की गयी है.
बूढ़ा बाबा शिव मंदिर है आस्था का केंद्र
बाबा शिव मंदिर आस्था का केंद्र है. यहां पुजारी विश्व मोहन चटर्जी हैं. वे कहते हैं कि मंदिर की स्थापना कई दशक पूर्व हुई थी. पहले छोटा सा मंदिर था. यहां सावन में पूजा व जलाभिषेक होता है. शिवरात्रि में कार्यक्रम होता है. यहां बंगाली समुदाय के भक्तों की खासी भीड़ जुटती है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है