घाटशिला.
घाटशिला अनुमंडल क्षेत्र में इस वर्ष अनवरत बारिश ने मक्का की खेती को पूरी तरह चौपट कर दिया है. कृषि वैज्ञानिकों और स्थानीय किसानों के अनुसार, भादो महीने में ग्रामीण इलाकों की बड़ी आबादी का मुख्य आहार मक्का होता है, जो इस साल संकट में है. आमतौर पर जब धान की खेती में पूरी पूंजी लग जाती है, तब मक्का से गरीब और मध्यमवर्गीय किसान अपने परिवार का पेट पालते हैं.स्थानीय भाषा में इसे ””जोनाहर लेटो”” कहा जाता है, जिसे उबालकर, भूंजकर या पीसकर खाया जाता है. पर इस बार खेतों में मक्का का दाना तक नहीं फूटा. बारिश इतनी तेज और लगातार हुई कि बुआई के समय ही बीज बह गये या सड़ गये. खेतों में पानी भरने से जहां पौधे निकले भी, वे भी सड़कर पीले पड़ गये.कृषि वैज्ञानिक डॉ. देवाशीष महतो के कहा कि इस बार बारिश ने समय पर बुआई ही नहीं होने दी. अब जुलाई भी खत्म होने को है, ऐसे में देर से बुआई से उपज की कोई उम्मीद नहीं है. उन्होंने बताया कि मक्का की खेती ऊपरी जमीन पर कम पानी में बेहतर होती है. जबकि इस बार पानी की अधिकता ने पूरे इलाके में ज्वार, बाजरा, मड़ुआ जैसे अन्य मोटे अनाज की फसलों को भी नुकसान पहुंचाया है. बाघुड़िया, झाटीझरना, जोड़सा, मिर्गीटांड़ जैसे कई गांवों के खेत इस बार खाली हैं. कहीं-कहीं, जैसे केशरपुर गांव में कुछ किसानों ने बीच में बारिश रुकने पर मक्का बोया भी, लेकिन पौधे अभी बहुत छोटे हैं और उनमें बाल आयेंगे या नहीं, यह भी अनिश्चित है.खेत में पानी बहने से बर्बाद हो जाता है मक्का : डॉ महतो
दारीसाई क्षेत्र अनुसंधान केंद्र के वरीय कृषि वैज्ञानिक डॉ देवाशीष महतो ने बताया कि मक्का की फसल का समय 90 से 100 दिन का होता है. खरीफ मौसम में बुआई का सही समय मई अंतिम से जून अंत तक होता है. बीस किलो मक्का बीज में एक हेक्टेयर भूमि में खेती होती है. पौधों से पौधों की दूरी 20 सेमी और कतार से कतार की दूरी 70 सेमी होती है. बीज बोने की गहराई 3-4 सेमी होती है. खेत में नमी रहने से बुआई हो जाती है. खेत में पानी बहने से मक्का बर्बाद हो जाता है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है