गालूडीह.
इन दिनों ग्रामीणों के लिए डोरी का तेल आय का साधन बन गया है. ग्रामीण इसे पकवान से लेकर औषधि के तौर पर इस्तेमाल करते हैं. बाजार में इसकी अच्छी कीमत मिलती है. इस समय सुबह एवं शाम में महुआ पेड़ के नीचे डोरी चुनने वालों की भीड़ लगी रहती है. महुआ का फल पककर जमीन पर गिर रहा है. इसे ग्रामीण संग्रहित करने में व्यस्त हैं. हेंदलजुड़ी पंचायत के वृंदावनपुर गांव निवासी पीथो मुर्मू और सालगे मुर्मू ने बताया कि महुआ फूल का समय खत्म होने के बाद उसका फल डोरी मिलता है. उसे जंगल से चुनकर लाते हैं. उसे सुखाने के बाद उसका बीज निकालते हैं. उसके बाद मील में ले जाकर उसका तेल निकलवाते हैं.कच्चा डोरी करीब 40 रुपये प्रति किलोग्राम बिकता है
यह तेल बड़ा काम का है. यह तेल न सिर्फ घर में पकवान से लेकर सर्दी खांसी में भी फायदेमंद है. बाजार में यह तेल 200 रुपये प्रति लीटर तक बिकता है. बाजार में कच्चा डोरी करीब 40 रुपये प्रति किलोग्राम बिकता है. सूखा डोरी की कीमत अधिक मिलती है. ग्रामीण क्षेत्र में आदिवासी और कुड़मी समाज के ग्रामीण दीपावली के समय तेल का उपयोग दीपक जलाने के लिए भी करते हैं. उन्होंने बताया कि इस महंगाई में डोरी उनके लिए मददगार साबित हो रहा है. इससे कुछ कमाई भी हो जाती है. उस कमाई से घर परिवार चलता है. इसके अलावा तीन-चार माह बाजार से तेल भी खरीदना नहीं पड़ता है.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है