गढ़वा. शहर के गढ़देवी मोहल्ला स्थित नरगिर आश्रम में चल रही रामकथा के पांचवें दिन बाल स्वामी प्रपन्नाचार्य ने श्रद्धालुओं को ताड़का वध, अहिल्या उद्धार, धनुष यज्ञ तथा राम विवाह का आध्यात्मिक विश्लेषण प्रस्तुत किया. उन्होंने ज्ञान, वैराग्य भक्ति को ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बताया. कहा कि सफलता के लिए मन का स्थिर होना आवश्यक है. क्योंकि चंचलता लक्ष्य प्राप्ति में बाधा उत्पन्न करती है. उन्होंने कहा कि विश्वामित्र जी वन में यज्ञ कर रहे थे. राक्षसों के अत्याचार से दुखी होकर उन्होंने राजा दशरथ से अपने यज्ञ की रक्षा के लिए श्रीराम और लक्ष्मण को मांगा. पहले तो राजा दशरथ असमर्थता जताते हैं, लेकिन ऋषि वशिष्ठ के समझाने पर वह उन्हें भेजने के लिए सहमत हो जाते हैं. श्रीराम और लक्ष्मण विश्वामित्र जी के साथ यज्ञ की रक्षा के लिए जाते हैं और राक्षसों का वध करते हैं. इसके बाद कथा में अहिल्या उद्धार का प्रसंग आता है. अहिल्या जो अपनी अद्वितीय सुंदरता के लिए प्रसिद्ध थीं. ऋषि गौतम के श्राप से पत्थर बन गयी थीं. विश्वामित्र जी ने श्रीराम से आग्रह किया कि वह अपने चरण स्पर्श से अहिल्या का उद्धार करें. इसके बाद जैसे ही श्रीराम ने पत्थर को छुआ, अहिल्या अपने वास्तविक स्वरूप में आ गयीं. पुष्प वाटिका में श्रीराम और माता सीता का प्रथम मिलन हुआ : प्रपन्नाचार्य ने कहा कि धनुष यज्ञ और राम विवाह पुष्प वाटिका में श्रीराम और माता सीता का प्रथम मिलन हुआ. इसे प्रेम और समर्पण की शुरुआत माना जाता है. सीताजी श्रीराम के अनुपम सौंदर्य को देखकर भाव-विभोर हो जाती हैं. राजा जनक ने स्वयंवर में शर्त रखी थी कि जो भी शिव धनुष को तोड़ेगा, वही सीता से विवाह करेगा. कई राजाओं के असफल प्रयास के बाद श्रीराम विश्वामित्र जी की आज्ञा से शिव धनुष को उठाते हैं और उसे एक ही क्षण में तोड़ देते हैं. धनुष टूटने पर परशुराम सभा में आते हैं और अत्यंत क्रोध प्रकट करते हैं. वह लक्ष्मण को चेतावनी देते हुए स्वयं को क्षत्रियों का संहारक बताते हैं. अंततः जब उन्हें ज्ञात होता है कि श्रीराम स्वयं भगवान विष्णु के अवतार हैं, तब वह शांत हो जाते हैं और तपस्या के लिए महेंद्र पर्वत की ओर प्रस्थान कर जाते हैं. रामकथा के दौरान धनुष यज्ञ एवं राम विवाह की भव्य झांकी भी निकाली गयी.
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