कारगिल से लेकर आज तक सीमा पर डटे हैं गढ़वा के वीर, बरवा गांव बना प्रेरणा का केंद्र
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अगली पीढ़ी को कर रहे प्रेरितबरवा और आसपास के गांवों के अमरदीप मिंज, रॉबर्ट केरकेट्टा, पौलुस कच्छप, सेल्बेस्तर कुजूर, अथनस केरकेट्टा, कालेदान कुजूर, लोरेन्स मिंज, कुलदीप टोप्पो जैसे सैनिक सेवा देकर रिटायर हो चुके हैं, लेकिन अब गांव में रहकर अगली पीढ़ी को देश सेवा के लिए प्रेरित कर रहे हैं. 21 बिहार रेजिमेंट के मेजर अथनस केरकेट्टा के भाई इसदोर केरकेट्टा अब भी बीएसएफ में सेवा दे रहे हैं. वहीं पंडरापानी के बलचन मिंज और बैरिया के अरुण लकड़ा भी सेना में योगदान दे रहे हैं.
सैनिकों की जुबानी – गर्व, जिम्मेदारी और बलिदान की गाथा
साथियों को खोया पर तिरंगे को झुकने नहीं दियाः अमरदीप बैरिया गांव के अमरदीप मिंज ने बताया कि हमने कारगिल की बर्फीली चोटियों पर अपने कई साथियों को खोया, लेकिन तिरंगे को कभी झुकने नहीं दिया. वह युद्ध आज भी आंखों में जिंदा है. रेलवे और बैंक में चयन के बावजूद सेना को चुना. अब खेती और किराना दुकान चला रहा हूं. अब मेरे बच्चे भी देश सेवा को तैयार हैं।……………..
पटाखे की तरह चलती थी गोलियांः पौलुस
फोटो :-आर्मी से रिटायर्ड सालेटोंगरी गांव के पौलुस बताया कि उन्होंने अधिकांश समय तक पंजाब बॉर्डर पर देश सेवा की, लेकिन एक ऐसा समय आया जब उन्हें जम्मू काश्मीर में पाकिस्तान बॉर्डर पर सेवा के लिए भेज दिया गया. वहां शाम होते ही पटाखे की तरह पाकिस्तानी सैनिक गोलीबारी करते थे. उन्होंने बताया कि गांव में दोस्तों को देखकर और पिता की इच्छा से सेना में चला गया पर वहां जाने के बाद देश सेवा का जुनून चढ़ गया.
करगिल युद्ध की बात सुनकर खौलता था खूनः सिलानंदफोटो:-
पिपरा गांव के रिटायर्ड सैनिक सिलानंद तिग्गा कारगिल युद्ध को याद करते हुए बताया कि उन्होंने 1989 में देश सेवा की शुरुआत की थी. करगिल युद्ध के समय वह राजस्थान बॉर्डर पर तैनात थे. युद्ध की सूचना के बाद उनका और उनके साथियों के खून खौल गया था. हम भी करगिल जाने की तैयारी में थे. देश सेवा का जज्बा अलग है. सम्मान के साथ नौकरी और दूसरे क्षेत्र में नहीं है. रिटायरमेंट के बाद उनका मन आधुनिक खेती की और लग गया. देशी बीज को हाइब्रिड बीज बनाने की तकनीक लोगों को सिखा रहे हैं.…………………………..
देश की जिम्मेदारी होना हमारी लिए गर्व की बातः हिरमोनफोटो :-
हिरमोन तिर्की ने बताया कि जब हम बॉर्डर पर तैनात होते हैं, तो मां-बाप की याद जरूर आती है पर देश पहले है. गांव की मिट्टी ने हमें हिम्मत दी है. हर रात जब हम गश्त पर निकलते है तो एक ही ख्याल होता है. हमारे पीछे पूरा देश है. हमारी ड्यूटी सिर्फ नौकरी नहीं, एक ज़िम्मेदारी है जिसे हम गर्व से निभाते हैं. बताते हैं की दोस्तों को देखकर इस सेवा में चले आए. लेकिन यहां आने के बाद अब देश सेवा छोड़ने का मन नहीं करता है
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