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गढ़वा बना आम उत्पादन का हब, 875 एकड़ में हो रही बागवानी

हर साल 22 जुलाई को राष्ट्रीय आम दिवस के रूप में मनाया जाता है.

जितेंद्र सिंह, गढ़वा

हर साल 22 जुलाई को राष्ट्रीय आम दिवस के रूप में मनाया जाता है. यह दिन आम के प्रति जागरूकता फैलाने, इसके पोषण व आर्थिक लाभ बताने और इसकी लोकप्रियता को और बढ़ाने का एक अवसर होता है. मौके पर अगर झारखंड के गढ़वा जिले की बात करें तो यहां आम की खेती अब एक क्रांतिकारी बदलाव का प्रतीक बन गयी है. कभी पिछड़ेपन और पलायन के लिए चर्चित गढ़वा अब मेहनती और नवाचारशील किसानों की पहचान बन चुका है. यहां बागवानी एक नयी रोशनी की तरह उभर रही है, और आम की खेती इसमें अग्रणी भूमिका निभा रही है.

हर साल बढ़ रहा है रकबा

जिले में अब तक कुल 875 एकड़ भूमि पर आम के पेड़ लगाये जा चुके हैं.यह संख्या हर साल तेजी से बढ़ रही है. इस वर्ष जिले में आम की रिकॉर्ड पैदावार दर्ज की गयी है, जिससे किसानों की आमदनी में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है.लंगड़ा, दशहरी, चौसा, बम्बइया और यहां तक कि जापानी मियाजकी जैसे कई किस्मों की खेती गढ़वा के किसान कर रहे है हब ” के रूप में पहचाना जाने लगा है।

बंजर भूमि पर लगाये 108 किस्मों के आम

भवनाथपुर प्रखंड के झगरखांड गांव के किसान मथुरा पासवान ने आठ बीघा बंजर जमीन को उपजाऊ बना दिया. उन्होंने 108 किस्मों के मल्टीग्राफ्टेड आम के पेड़ लगाए, जिनमें एक ही पेड़ पर कई किस्मों के आम फलते हैं.वर्तमान में पेड़ों में फल आने शुरू हो गए हैं, लेकिन मथुरा पासवान उन्हें बाजार में बेचते नहीं, बल्कि गांव वालों में मुफ्त बांट देते हैं. यह केवल बागवानी नहीं, बल्कि सामुदायिक भावना की भी मिसाल है. मेराल प्रखंड के पचफेड़ी गांव के डॉ. मोहम्मद नेसार ने वर्ष 2017-18 में तीन एकड़ भूमि में बागवानी की शुरुआत की. उन्होंने 200 से अधिक आम के पेड़ लगाये, जिनमें जापान का महंगी किस्म वाला मियाजकी आम भी शामिल है, जिसकी कीमत बाजार में हजारों रुपये प्रति किलो होती है.11 इसके अलावा उन्होंने अमरूद, अनार, काजू, सेव, अंजी हालांकि अभी उनके पौधे पूरी तरह परिपक्व नहीं हुए हैं, फिर भी वह हर साल एक लाख रुपये से अधिक की कमाई आम से कर रहे हैं. भविष्य में यह आमदनी कई गुना बढ़ने की संभावना है. गढ़वा के ये किसान न केवल आम की खेती कर रहे हैं, बल्कि एक बिजनेस मॉडल भी खड़ा कर रहे हैं. बंजर जमीन को उपजाऊ बनाकर वे जिले के लिए प्रेरणा स्रोत बन गये हैं. आने वाले वर्षों में गढ़वा निश्चित रूप से झारखंड में बागवानी का प्रमुख केंद्र बन सकता है.

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