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गर्मी से राहत, पर किसानों को मॉनसून की चिंता

मई का अंतिम सप्ताह होने के बावजूद, गढ़वा जिले के लोगों को इस बार भीषण गर्मी और लू से राहत मिल रही है.

वरीय संवाददाता, गढ़वा

मई का अंतिम सप्ताह होने के बावजूद, गढ़वा जिले के लोगों को इस बार भीषण गर्मी और लू से राहत मिल रही है. मौसम विज्ञान के पूर्वानुमान के अनुसार, आने वाले दिनों में भी हर दिन आंधी के साथ बारिश की संभावना है, जिससे तापमान में गिरावट बनी रहेगी. ग्रामीण कृषि मौसम सेवा गढ़वा द्वारा जारी बुलेटिन के मुताबिक, शनिवार (24 मई) को तीन मिमी बारिश का अनुमान है, जबकि रविवार (25 मई) को 16 मिमी बारिश की संभावना है. इसी तरह 26 मई को आठ मिमी, 27 मई को नौ मिमी और 28 मई को चार मिमी बारिश का अनुमान है. इस दौरान अधिकतम तापमान 35 से 37 डिग्री सेल्सियस के बीच रहेगा, जबकि न्यूनतम तापमान 23 डिग्री सेल्सियस तक रहने की उम्मीद है. इन दिनों आसमान में प्रायः बादल छाये रहेंगे और कहीं-कहीं मेघ गर्जन व बारिश के साथ अत्यधिक तेज हवाएं या आंधी-तूफान भी आ सकता है.

इस साल अप्रैल के अंतिम सप्ताह में जहां जिले का अधिकतम तापमान 42 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था, वहीं मई महीने में स्थिति बिल्कुल विपरीत रही. अप्रैल में अनुमान लगाया गया था कि मई में तापमान 45 डिग्री सेल्सियस पार कर जायेगा, जिससे लोगों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा. हालांकि, मई के शुरुआती दो दिनों को छोड़कर, पूरे महीने तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर नहीं गया. सुबह में धूप और दोपहर बाद बादल छाने के साथ आंधी-पानी का सिलसिला चलता रहा, जिससे वातावरण खुशनुमा बना रहा और लोग लू व भीषण गर्मी से बचे रहे.

कृषि पर संभावित असर: बैशाख-जेठ की गर्मी का महत्व

हालांकि, यह खुशनुमा मौसम कृषि विशेषज्ञों के लिए चिंता का विषय बन गया है. उनका मानना है कि मई महीने में गर्मी पड़ने की बजाय हर दिन बूंदा-बांदी होना आगामी मॉनसून के लिए शुभ संकेत नहीं है. यह आगामी खेती के लिए चिंताजनक स्थिति पैदा कर सकता है. किसानों का कहना है कि हिंदी महीने के हिसाब से बैशाख और जेठ महीने को पूरी तरह से तपना चाहिए, क्योंकि इसी के बाद आषाढ़ से अच्छी बारिश की उम्मीद रहती है. लेकिन इस बार इसके विपरीत स्थिति बन रही है. पूरा बैशाख और लगभग आधा जेठ बीतने को है, पर गर्मी पड़ने की बजाय मौसम खुशनुमा बना रहा. यदि मई महीने में पर्याप्त गर्मी नहीं पड़ी, तो जून में आने वाला मॉनसून या तो विलंब से आ सकता है या फिर कृषि की अपेक्षाओं के विपरीत हो सकता है, जिससे फसलों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है.

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