जितेंद्र सिंह, गढ़वा
गढ़वा शहर से सटे करमडीह गांव में स्थित जुड़वानीय शिव मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का प्राचीन प्रतीक है, बल्कि यह सामाजिक एकता, सांस्कृतिक धरोहर और सामूहिक सहयोग का एक जीवंत उदाहरण भी बन गया है. लगभग 150 वर्षों से अधिक पुराना यह मंदिर सावन के महीने में अपनी भक्ति, भाव और भव्यता के लिए प्रसिद्ध है. दूर-दराज़ के गांवों और शहरी इलाकों से हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां भगवान शिव के दर्शन और जलाभिषेक के लिए जुटते हैं.इस मंदिर का इतिहास जितना पुराना है, उतना ही प्रेरणादायक इसका नव निर्माण भी रहा है. वर्षों पहले जब मंदिर की संरचना जर्जर हो चुकी थी और उसका गर्भगृह क्षतिग्रस्त होने लगा, तब स्थानीय लोगों और मंदिर समिति ने मिलकर इसके पुनर्निर्माण की ठानी. आठ साल पहले समिति ने संकल्प लिया और सीमित संसाधनों के बावजूद मंदिर के जीर्णोद्धार की शुरुआत की. आज यह मंदिर करीब 51 फीट ऊंचाई के गुंबद के साथ श्रद्धालुओं के लिए एक अलौकिक अनुभूति का केंद्र बन चुका है.
मंदिर के लिए गांव के दो सगे भाइयों ने दी जमीन
इस भव्य निर्माण में करमडीह गांव के दो भाइयों—लालबिहारी महतो उर्फ गुरुजी और उनके छोटे भाई संजय महतो की भूमिका उल्लेखनीय रही. दोनों भाइयों ने मंदिर निर्माण के लिए अपनी भूमि निःस्वार्थ भाव से दान में दी. गुरुजी बताते हैं कि उनके पिता ने गांव में स्कूल निर्माण के लिए ज़मीन दान की थी, उसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने यह कदम उठाया. संजय महतो ने भी अपने हिस्से की भूमि मंदिर के नाम कर दी और बताया कि वे जुड़वानीय शिव के परम भक्त हैं. यह त्याग और समर्पण न केवल श्रद्धा का परिचायक है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि जब समाज अपने सांस्कृतिक मूल्यों को बचाने के लिए एकजुट होता है, तो असंभव भी संभव हो जाता है.
सावन में होता है विशेष धार्मिक आयोजन
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