: संत जोन मेरी वियानी पर्व दिवस आज. : संत जोन मेरी वियानी कहा करते थे : पुरोहित का जीवन अपने लिए नहीं, बल्कि दूसरों के लिए है. : गुमला धर्मप्रांत के सभी 39 चर्चो में आज संत जोन मेरी वियानी का पर्व मनाया जायेगा. तैयारी पूरी. 3 गुम 9 में गुमला के महागिरजाघर में संत जोन मेरी वियानी की प्रतिमा जगरनाथ पासवान, गुमला पुरोहितों के संरक्षक संत जोन मेरी वियानी का पर्व दिवस चार अगस्त को है. उनकी संघर्ष और सफलता की बेमिसाल कहानी है. 24 में से 18 घंटे सिर्फ वे काम करते थे. आठ मई 1786 ईस्वी को एक साधारण परिवार में जन्मा बालक संत बना. बुराई से जकड़े आर्स गांव (आर्स पल्ली) को बदलने का श्रेय जोन मेरी वियानी को जाता है. बुराई से लड़े. कभी किसी से नहीं डरे. इसलिए आगे चलकर जोन मेरी वियानी संत बनें. वह अपनी माता की प्रार्थनामय जीवन से प्रभावित होकर बड़ा हुआ. बचपन की जो प्रार्थना की किरणों उनमें उदित हुई. उसे उन्होंने अपने जीवन के अंत तक बनाये रखा. जिस भी कार्य को करने का उन्होंने संकल्प लिया. उसे पूरा करके ही दम लिये. उनकी आत्मा इस प्रकार प्रभु में लीन हो गयी कि उन्होंने अपने जीवन को आर्स के एक छोटे से गांव में रहकर प्रभु के लिए समर्पित कर दिया. आर्स गांव में बुराई चरम पर था. उन्होंने वहां सुधार लाये. उन्होंने देखा कि गांव में युवक-युवतियों, विवाहित जोड़ों और बच्चों के लिए धार्मिक शिक्षा व संस्कार ग्रहण करने का कोई अवसर नहीं था. इसपर उन्हें बहुत दुख हुआ. उन्होंने दृढ़ प्रतिज्ञा की कि वे इन सभी का उत्थान करेंगे. धार्मिक लोगों की मदद से उन्होंने पूरे आर्स के वातावरण को बदल दिये. पापमय जीवन बिताने वालों की आलोचना उन्होंने कड़े शब्दों में की. घर-घर में जाकर युवाओं को शिक्षित किया. कई बार जोन मेरी वियानी को गांव छोड़ने के लिए विवश किया गया. लेकिन वे डरे नहीं. जोन मेरी वियानी की पहल रंग लायी. ईश्वर के प्रति लोगों में प्रेम की भावना जागी और आर्स गांव शांति व प्रेम का स्थान बन गया. 18 से 20 घंटे तक काम करते थे संत जॉन मेरी वियानी सभी पुरोहितों के संरक्षक संत हैं. वे मूलत: फ्रांस के हैं. साधारण परिवार में जन्मे संत जोन मेरी वियानी के माता-पिता काफी धार्मिक थे. इसका सीधा प्रभाव जोन मेरी वियानी के जीवन पर पड़ा और वे भी धार्मिक हो गये. उनके जीवन में एक बड़ी इच्छा थी कि सभी लोग धर्म के मार्ग पर चले. पुरोहित बनने की भी इच्छा थी. इसके लिए उन्होंने काफी संघर्ष किया और अंतत: वे एक पल्ली पुरोहित बन गये. लेकिन जिस पल्ली का उन्हें पहला पुरोहित बनने का गौरव हासिल हुआ. वहां के लोग अधार्मिक थे. धर्म कर्म में रुचि नहीं लेते थे. इस पर संत जोन मेरी वियानी ने वहां के लोगों को धर्म के मार्ग से जोड़ने का बीड़ा उठाया और इसके लिए उन्होंने सबसे पहले स्वयं में बदलाव लाया. इसके बाद लोगों को ईश्वर की महत्ता के बारे में जानकारी दिये और धर्म से जोड़ा. संत जोन मेरी वियानी दिन में 18 से 20 घंटे तक काम करते थे. उनके कार्यो के कारण ही उन्हें संत की उपाधि मिली. संत जोन मेरी वियनी एक महान संत थे : बिशप बिशप लीनुस पिंगल एक्का ने कहा कि जिस गांव में लोग पापमय जीवन जी रहे थे. उस गांव के लोगों ने संत जोन मेरी वियनी के नेतृत्व में धार्मिकता का जीवन अपनाया. संत जोन मेरी वियनी एक महान संत थे. संत जोन मेरी वियनी का जीवन हम सबों के लिए प्रेरणादायी है. मन में यदि दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो कठिनाईयां चाहे जितनी भी हो. सफलता जरूर मिलती है. संत जोन मेरी वियनी इसके उदाहरण हैं. इच्छाशक्ति से गांव की तस्वीर बदल दी : फादर जेरोम संत पात्रिक महागिरजा के पल्ली पुरोहित फादर जेरोम एक्का ने कहा कि सन 1780-90 के दशक में संत जोन मेरी वियनी के जन्मस्थल फ्रांस के आर्स गांव में बुराई चरम पर थी. वहीं संत जोन मेरी वियन्नी अपनी मां की प्रार्थनामय जीवन में बड़ा हो रहा था. बड़े होने के बाद उन्होंने बुराई के खिलाफ लड़ाई लड़ी. वे किसी से डरे नहीं और आगे बढ़ते रहे. उन्होंने लोगों की सेवा की. ईश्वर की भक्ति की और अपने दृढ़ इच्छाशक्ति व भक्ति से पूरे आर्स गांव की तस्वीर बदल दी. पुरोहितों के संरक्षक संत व आदर्श हैं : फादर मूनसन फादर मूनसन बिलुंग ने कहा कि संत जोन मेरी वियनी सभी पल्ली पुरोहितों के संरक्षक संत और आदर्श हैं. संत बनने से पूर्व वे एक पुरोहित थे. पुरोहितों का मुख्य काम संस्कार देना होता है और वे संस्कार देने के लिए हमेशा तत्पर रहते थे. संत मेरी जोन वियन्नी दिन भर में 16 से 18 घंटे तक संस्कार देने का काम करते थे. ईश्वर के प्रति आस्था और मानवों की सेवा ने उन्हें संत बना दिया. उनके आदर्श हम सबों के लिए प्रेरणादायी है.
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