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बड़कागांव में 126 साल से लग रहा है बनस मेला

बनस मेला या मंडा पर्व झारखंड के पर्व-त्योहारों में से प्रमुख है. यह झारखंड की संस्कृति से जुड़ा हुआ है.

बड़कागांव. बनस मेला या मंडा पर्व झारखंड के पर्व-त्योहारों में से प्रमुख है. यह झारखंड की संस्कृति से जुड़ा हुआ है. झारखंड के हर जिले के गांव-देहातों में यह पर्व मनाया जाता है, लेकिन हजारीबाग जिले के बड़कागांव में बनस मेला अनोखा है. यहां का बनस मेला मंडा पूजा 126 साल पुराना है. उस समय शिव भक्त गमछे से बांधकर बनस के खंभे के लाठ में झूला करते थे. 85 वर्षीय वृद्ध देवल भुइयां के अनुसार, 126 साल पहले बारिश नहीं होने से अकाल पड़ गया था. इसलिए बारिश होने के लिये भगवान शिव की आराधना की गयी. यह पूजा शुरू की गयी थी. राम जानकी मंदिर के पुजारी चिंतामणि महतो व केरीगढ़ा निवासी प्रेम महतो का कहना है कि हमारे पूर्वज बताया करते थे कि बड़कागांव में 1899 में बनस पूजा की शुरुआत की गयी थी. उस समय कलश स्थापना बिगा महतो व मेघन दास बाबा ने की थी. उस समय आर्थिक सहयोग कर्णपुरा राज के राजा राम नारायण सिंह ने किया था. 1899 से 1935 तक बिगा महतो, बीगन भुइयां, सोनू राम, नेतलाल महतो व कुंजल रविदास के नेतृत्व में पूजा होती रही. 1935 से लेकर 1984 तक बीनू महतो, नेपल महतो, पाठ भगत शुकर भुइयां, फूल भगत व झनु राम के नेतृत्व में बनस मेला लगाया गया. उस समय से अब तक शिव भक्त अपने पीठ में लोहे के कील से छिदवा कर 60 फीट खंबे के लाठ में झूला करते हैं. यह मेला देखने के लिये हजारीबाग के अंग्रेज कमिश्नर भी आते थे और चंदा भी दिया करते थे.

छऊ नृत्य की परंपरा

मेले का आकर्षण केंद्र छऊ नृत्य भी रहता था. 1985 से लेकर 2012 तक महावीर महतो पाठ पुजारी के रूप में पूजा करता रहा. पाठ भगत के रूप में शूकर भुइयां, बद्री भुइयां, चरकु भुइयां, बचन देव भुइयां, कार्तिक भुइयां, पूषण भुइयां, फूल भगत के रूप में बालदेव राम, गणेश राम, संतोष राम, विकास राम, हनुमान चटिया के रूप में देवल भुइयां, कैलाश राम, सिकंदर भुइयां, चतुर्भुज राम, विवेक कुमार राम बनस मेला झूलते आ रहे हैं. इसके अलावा बड़कागांव के विभिन्न गांवों एवं मोहल्लों के शिव भक्त 1985 से लेकर अब तक झूलने का काम करते हैं.

सौहार्द्र बनाये रखने के लिए 12 साल बाद हुई शुरू

चिंतामणि महतो ने बताया कि आपसी कुछ मनमुटाव को लेकर 12 साल तक बनस मेला बंद हो गया थाए लेकिन बड़कागांव में जब बहुत लोगों को व्यक्तिगत रूप से नुकसान होने लगा तो यह मेला शुरू किया गया. आपसी सौहार्द्र बनाये रखने के लिए 12 साल बाद मेले को शुरू करने में चिंतामणि महतो, पिंटू गुप्ता, रवींद्र लाल, बंधन महतो, दर्शन प्रसाद कुशवाहा, हरिनाथ राम, कैलाश महतो, आनंद कुमार महतो की मुख्य भूमिका रही है.

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