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शादी-विवाह में बढ़ रहा डीजे क्रेज, बैंडबाजे की धुन हो रही मंद

आधुनिकता की चकाचौंध से अब बड़कागांव के ग्रामीण क्षेत्र भी रोशन होने लगे हैं. खासकर शादी-विवाह जैसे मांगलिक अवसरों पर बैंडबाजों की जगह डीजे का प्रचलन तेजी से बढ़ता जा रहा है.

बड़कागांव. आधुनिकता की चकाचौंध से अब बड़कागांव के ग्रामीण क्षेत्र भी रोशन होने लगे हैं. खासकर शादी-विवाह जैसे मांगलिक अवसरों पर बैंडबाजों की जगह डीजे का प्रचलन तेजी से बढ़ता जा रहा है. डीजे साउंड की बुकिंग शादी विवाह में दस हजार से लेकर 25 हजार रुपये तक होती है. आलम यह है कि प्रखंड के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में बसे गांव की गलियों में डीजे की धुन पर ग्रामीण युवाओं का झूमना आम नजारा बन गया है. अब आज मेरे यार की शादी है…, दूल्हे का सेहरा सुहाना लगता है… कौन कलर की साड़ी पहनी हो…अरे नहीं-नहीं..तेरा तन डोले, मेरा मन डोले… तथा मुन्नी बदनाम हुई.. जी हां, कुछ ऐसी ही स्थिति है शहर-गांव में बजने वाले गीत-संगीत और इसके डिमांड का अब ग्रामीण क्षेत्रों में भी बैंड-बाजे की जगह डीजे ने ले ली है. डीजे की बोल जितनी समझ में नहीं आती उससे अधिक इसकी बेहद तेज आवाज के कारण शरीर और धड़कन में कंपन महसूस की जाती है. इस कानफाड़ू और सेहत के लिए खतरनाक डीजे का क्रेज सबसे ज्यादा युवाओं और बच्चों में है. डीजे की तेज आवाज के शोर में बैंडबाजे की कर्णप्रिय मधुर संगीत गुम होती जा रही है. अत्यधिक तेज आवाज के असर से स्वास्थ्य प्रभावित होना स्वाभाविक है. डीजे के शोर में पारंपरिक बैंड-बाजे की धुन को भी आघात पहुंच रहा है. हालांकि, शादी-विवाह में घर के बड़े-बुजुर्ग बैंड पार्टी को ही अहमियत देते हैं. लेकिन, युवाओं की पसंद के आगे उनकी एक नहीं चलती. जिधर से डीजे गुजरता है वहां के लोगों को भी परेशानी होती है. शहर से दूर गांव, जहां परंपराएं धरोहर की तरह फलती-फूलती है, वहां डीजे का प्रचलन आम हो गया है. ग्रामीण युवा धड़कते डीजे की धुन पर थिरकते देखे जा सकते हैं. कर्णप्रिय गीतों की जगह आज के नये और अश्लील गाने डीजे की पहली खासियत है. जिस पर आज के युवा झूमते-झूमते मदहोश हो जाते हैं. कहीं-कहीं डीजे पर महिलाओं को भी थिरकते देखा जाता है. किसान मेडिकल होम के डॉ बालेश्वर महतो का कहना है कि यह युवा पीढ़ी की देन है. वे कहते हैं कि बैंड-बाजे लोगों के रश्मों-रिवाज, धार्मिक, सामाजिक मान्यताओं से जुड़े हैं, जिसे धार्मिक और सामाजिक अनुष्ठानों में आज भी बजाया जाता है. इसलिए यह भी समाप्त नहीं होगा. डीजे ने सामाजिक, सांस्कृतिक तारतम्य को कुछ पीछे जरूर धकेल दिया है. युवाओं को संगीत की जगह सिर्फ तेज आवाज से मतलब है. यही वजह है कि बारात में बड़े-बुजुर्ग की संख्या घटती जा रही है. सिविल सोसाइटी के अध्यक्ष मनोज गुप्ता कहते हैं कि यह अपसंस्कृति है जिसे लेकर समाज को जगना होगा. बहरहाल, डीजे की डिमांड और दिनों-दिनों बढ़ने जाने से शहरी-ग्रामीण युवा एक ही रंग में रंगते जा रहे हैं. जिसे तेज आवाज पसंद नहीं है वे बगल से ही निकल जा रहे हैं.

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