हजारीबाग. हजारीबाग स्थित विनोबा भावे विश्वविद्यालय के विवेकानंद सभागार में राजनीति विज्ञान व आइक्यूएसी के संयुक्त तत्वावधान में शनिवार को संगोष्ठी का आयोजन किया गया. मौके पर मुख्य अतिथि हजारीबाग सांसद मनीष जायसवाल ने कहा कि वन नेशन वन इलेक्शन की प्रस्तावित व्यवस्था को जन आंदोलन का रूप दिया जाना चाहिए, क्योंकि यह प्रत्येक नागरिक को प्रभावित करने वाला विषय है. उन्होंने बताया कि भारत में 1947 से 1967 तक लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराये जाते थे, लेकिन अनुच्छेद 356 के दुरुपयोग के कारण इस व्यवस्था को खत्म कर दिया गया. बार-बार के चुनावों से देश को आर्थिक और प्रशासनिक नुकसान उठाना पड़ता है, इसलिए नागरिकों को एक राष्ट्र, एक चुनाव की आवश्यकता को समझना चाहिए.
वन नेशन वन इलेक्शन के फायदे
सांसद ने इस व्यवस्था के लाभ पर जोर देते हुए कहा कि इससे भ्रष्टाचार और महंगाई पर रोक लगेगी. बार-बार की आचार संहिता सरकारी तंत्र को प्रभावित करती है, जिससे आम जनता को असुविधा होती है. इसके अलावा, एक राज्य में चुनाव होने पर दूसरे राज्यों पर भी प्रभाव पड़ता है, जिसे समाप्त करने की जरूरत है.विकसित भारत के लिए आवश्यक : प्रो दिनेश
विभावि कुलपति प्रो दिनेश कुमार सिंह ने कहा कि वन नेशन वन इलेक्शन जैसी व्यवस्था कई विकसित देशों में पहले से लागू है. यदि भारत तृतीय अर्थव्यवस्था बनना चाहता है, तो इसे अपनाना ही पड़ेगा. उन्होंने कहा कि विजन 2047 के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए यह प्रणाली सहायक साबित हो सकती है.समाज को बांटने वाली ताकतों पर लगेगा अंकुश: डॉ सादिक
समाज विज्ञान संकाय के अध्यक्ष सह विभावि के कुलसचिव डॉ. सादिक रज्जाक ने कहा कि चुनाव के दौरान राजनीतिक दल समाज को विभाजित करने वाले मुद्दों को उठाते हैं, जिसका असर चुनाव के बाद भी बना रहता है. वन नेशन वन इलेक्शन से ऐसे मुद्दों को बार-बार उठाने का अवसर नहीं मिलेगा, जिससे सामाजिक सौहार्द बनाए रखने में मदद मिलेगी. उन्होंने कहा कि बार-बार की आचार संहिता से विश्वविद्यालयों के कार्य भी बाधित होते हैं. संगोष्ठी में डॉ शुकल्याण मोइत्रा, डॉ केके गुप्ता सहित अन्य शिक्षक, अधिकारी व विद्यार्थी उपस्थित थे.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है