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मंदिर केवल धार्मिक संरचना नहीं सभ्यता व संस्कृति का भी प्रतीक

इतिहास विभाग में प्राचीन भारत की मंदिर स्थापत्य कला पर सेमिनार

हजारीबाग. विनोबा भावे विवि के स्नातकोत्तर इतिहास विभाग द्वारा शनिवार को राधाकृष्णन सभागार में सेमिनार का आयोजन किया गया. विषय था-प्राचीन भारत में मंदिर स्थापत्य कला. अध्यक्षता विभागाध्यक्ष डॉ हितेंद्र अनुपम ने की. मुख्य वक्ता प्रो डीपी कमल (विभागाध्यक्ष, पटना विवि ने मंदिर स्थापत्य का वैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत किया. उन्होंने मूर्तियों, देवताओं और उनके वाहनों के प्रतीकात्मक महत्व को विस्तार से बताया. कहा कि मंदिर केवल धार्मिक संरचना नहीं, बल्कि प्राचीन सभ्यता की लौकिक व पारलौकिक सोच का प्रतीक हैं. उन्होंने हड़प्पा से लेकर गुप्तकाल के दशावतार मंदिरों तक का वर्णन किया. प्रो कमल ने उत्तर व दक्षिण भारत की स्थापत्य शैलियों- नागर, बेसर और द्रविड शैली पर चर्चा की और वृहदेश्वर मंदिर के शीर्ष पर स्थित कलश की विशेषता को रेखांकित किया. प्रश्नोत्तर सत्र में विद्यार्थियों के साथ संवाद करते हुए उन्होंने पंचायतन शैली के मंदिरों की विशेषता भी बतायी. इस अवसर पर विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ विकास कुमार, डॉ शंभु दयाल सिंह, सुरेश सिंह मुंडा सहित अन्य शिक्षक व शोधार्थी उपस्थित थे. संचालन भैरव यादव व धन्यवाद ज्ञापन डॉ हितेंद्र अनुपम ने दिया. मौके पर इतिहास विभाग के शोधार्थी के अलावे स्नातकोत्तर द्वितीय एवं चतुर्थ सेमेस्टर के विद्यार्थी उपस्थित थे.

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