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Everest tsaf mohan rawat : लाश को देखकर थोड़ा डरा जरूर, लेकिन हिम्मत नहीं हारी : मोहन

टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन के सीनियर इस्ट्रक्टर मोहन राउत एवरेस्ट फतह करके जमशेदपुर लौट आयें है.

एवरेस्ट फतह करके जमशेदपुर लौटे मोहन राउत टीएसएएफ ने किया जारदार स्वागत जमशेदपुर. टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन के सीनियर इस्ट्रक्टर मोहन राउत एवरेस्ट फतह करके जमशेदपुर लौट आयें है. गुरुवार को टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन और टाटा स्टील खेल विभाग की ओर से उनका जेआरडी टाटा स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में जोरादर स्वागत किया गया. टाटा स्टील के वीपी (सीएस) डीबी सुंदर रमम उनको माला पहनाकर स्वागत किया. उससे पहले उनको खुली जीप में बाजे-गाजे के साथ ट्रेनिंग सेंटर के बच्चे साउट कर कर स्टेडियम के अंदर लेकर आयें. मौके पर टाटा स्टील स्पोर्ट्स के प्रमुख मुकुल विनायक चौधरी, टीएसएएफ के प्रमुख हेमंत गुप्ता, पूर्व अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर सह जेएससीए के सचिव सौरभ तिवारी व अन्य लोग मौजूद थे. मौके पर मोहन राउत ने टाटा स्टील का शुक्रिया अदा दिया और कहा कि मेरे सपने को टाटा स्टील ने पंख दिया. जिससे मैं एवरेस्ट के शिखर तक पहुंच सका. उन्होंने बछेंद्री पाल का जिक्र करते हुए कहा कि उनके मोटिवेशन ने मुझे काफी कुछ करने के लिए प्रेरित किया. साथ ही हेमंत गुप्ता ने मेरे ट्रेनिंग को काफी गंभीरता से लिया और अपने एवरेस्ट एक्सपीडिशन का पूरा उपयोग करते हुए मुझे अच्छे से ट्रेंड किया. मैंने छह लाशें भी देखी, लेकिन आगे बढ़ता रहा मोहन राउत ने जेआरडी टाटा स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में आयोजित प्रेस वार्ता में पत्रकारों से अपना अनुभव साझा किया. उन्होंने कहा कि लगभग एक महीने पांच दिन के अपने एवरेस्ट अभियान में कई कठिनाइयों का सामना किया. 18 मई की सुबह 5 बजकर 20 मिनट (नेपाली समयानुसार) में एवरेस्ट की शिखर पर पहुंचने वाले मोहन राउत ने कहा कि मौसम काफी सर्द होने के कारण मेरा एक्सपीडिशन काफी मुश्किल था. हवा 45-50 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से चल रही थी. जिससे ऊपर चढ़ने में कठिनाई हो रही थी. हमने अधिकतर चढ़ाई रात को ही की. उपर चढ़ाई के दौरान कई बार ऐवलैन्च (पहाड़ से गिरता हुआ बर्फ का ढेर) देखने को मिला. हमने मौत को काफी नजदीक से देखा, एक समय मैं सहम गया था. छह लाशें रास्ते में देखने को मिला. जो अलग-अलग ग्रुप के सदस्य थे. लेकिन हिम्मत नहीं हारी और एवरेस्ट फतह किया. इसके अलावा ग्लेशियर के सरकने की आवाज भी मुझे काफी परेशान किया. लेकिन, इसके लिए मैं मानसिक रूप से तैयार था. उन्होंने बताया कि एवरेस्ट पर चढ़ना और उसकी चोटी पर पैर रखना जितना मुश्किल है. उससे अधिक कठिन लौटना है. एक तो ढलान होती है. जब, हम अपने कैंप से ऊपर चढ़ते हैं, तो कहीं-कहीं पर बड़े-बड़े हिम दरार दिखाई देते हैं. इसे सीढ़ी लगाकर पार करना पड़ता है. लौटने के दौरान इन दरारों में बर्फ था. जिससे काफी दिक्कत हुई. ऐसे ग्लेशियर जहां हम पानी पीते थे, वह भी पूरी तरह से जम गया था. इसलिए हमें पानी बनाने में काफी दिक्कत हुई. ऊपर से 15-17 किलो का अपना सामान लेकर चलना भी चुनौतीपूर्ण था. कितनी बार हिम के कारण रास्ता का सही पता भी नहीं चल पाता.

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