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Jamshedpur News : संथाली सिनेमा को समर्पित पहली पुस्तक जल्द ही पाठकों के बीच होगी

Jamshedpur News : संताली सिनेमा से लंबे समय से जुड़े रमेश हांसदा ने लेखन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण पहल की है. उन्होंने प्रसिद्ध संथाली फिल्मकार दशरथ हांसदा के योगदान को केंद्र में रखकर संथाली सिनेमा पर एक पुस्तक लिखी है

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संताली सिनेमा से लंबे समय से जुड़े रमेश हांसदा ने लेखन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण पहल की है. उन्होंने प्रसिद्ध संताली फिल्मकार दशरथ हांसदा के योगदान को केंद्र में रखकर संताली सिनेमा पर एक पुस्तक लिखी है, जिसका नाम है, संताली सिनेमा और दशरथ हांसदा एक अनकही कहानी (हिंदी), संताली सिनेमा आर दशरथ हांसदा हाक जियोंन काहनी (संताली ओल चिकी) और दशरथ हांसदा ए पिलर ऑफ संताली सिनेमा एन अनटोल्ड स्टोरी ( अंग्रेजी), यह पुस्तक तीन भाषाओं में प्रकाशित होने जा रही है. पुस्तक लगभग 100 पृष्ठों की है, जिसमें लेखक ने अपने वर्षों के अनुभव, शोध और संकलन के आधार पर संताली सिनेमा के विकास यात्रा को क्रमबद्ध रूप में प्रस्तुत किया है. पुस्तक में संताली सिनेमा के प्रारंभिक दौर, गंगाधर हेंब्रम की वीडियो फिल्म ‘सारथी नाचार’ से लेकर पहले सेल्युलाइड फिल्म ‘चांदो लिखोन’ तक का विवरण विस्तृत रूप में दिया गया है. पुस्तक में दशरथ हांसदा द्वारा निर्मित प्रमुख फिल्मों-सगुना एना सुहाग दुलड, सीता नाला रे सागुन सुपारी के निर्माण के साथ-साथ झारखंड के प्रमुख राजनेताओं रामदास सोरेन, हेमंत सोरेन, अर्जुन मुंडा और रघुवर दास की सिनेमा क्षेत्र में भूमिका का भी उल्लेख किया गया है. खास बात यह है कि किस प्रकार इन नेताओं ने सिनेमा के माध्यम से जनसंपर्क और सामाजिक जागरुकता को बढ़ावा दिया, इसे भी पुस्तक में बारीकी से दर्शाया गया है. पुस्तक में दशरथ हांसदा की निजी जीवन यात्रा को भी छूते हुए उनके संघर्ष, सपनों और उपलब्धियों को सजीव रूप में प्रस्तुत किया गया है.

रमेश हांसदा ने कहा कि इस पुस्तक के प्रकाशन के बाद, यह उम्मीद की जा रही है कि संताली सिनेमा पर शोध करने वाले विद्यार्थियों, फिल्म प्रेमियों और भाषा-संस्कृति के जानकारों के लिए यह एक मील का पत्थर साबित होगी. यह केवल एक दस्तावेज नहीं, बल्कि संताली सिनेमा के इतिहास को सहेजने और आगे बढ़ाने का एक सशक्त माध्यम बन सकती है. संताली भाषा, जो भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित है, एक समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर है. इस भाषा के विकास में कई साहित्यकारों, कलाकारों और समाजसेवियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. पंडित रघुनाथ मुर्मू से लेकर हजारों लेखकों तक, सभी ने इस भाषा को सशक्त बनाने में निरंतर प्रयास किया है. भाषा के प्रचार-प्रसार में सिनेमा की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है.

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