Raghubar Das| झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास लगातार सरकार पर हमलावर हैं. हेमंत सोरेन सरकार पर उन्होंने एक बार फिर निशाना साधा है. पूर्व मुख्यमंत्री ने झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस, राजद, वामदल नीत सरकार से पूछा है कि किसके डर से झारखंड में पेसा कानून लागू नहीं किया जा रहा है. उन्होंने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर आदिवासी समाज को धोखा देने जैसा गंभीर आरोप लगाया है. रघुवर दास ने कहा कि अब आदिवासी सिर्फ वोटर नहीं रहा. वह अपने अधिकारों के लिए सड़क पर उतर रहा है. यही जागृति झारखंड में उलगुलान को जन्म देगी.
बारिश के बाद संताल परगना के हर गांव में लगायेंगे चौपाल
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि हेमंत सोरेन आदिवासी समाज को बताये कि किन परेशानियों में या किसके दबाव में पेसा नियमावली को लागू नहीं करना चाहते हैं. कहा कि हेमंत सोरेन ने झारखंड चुनाव में जनता से अबुआ राज के लिए यह कहते हुए वोट मांगा था कि उन्हें सत्ता में लायें, वे पेसा लागू करेंगे. पेसा लागू होने पर आदिवासी समाज को न केवल ग्राम सभा में आर्थिक व सामाजिक अधिकार मिलेंगे, बल्कि 15वें वित्त आयोग के 1400 करोड़ रुपए का बजट भी प्राप्त होगा.
संताल के हर गांव में जनता से करेंगे संवाद – दास
हेमंत सोरेन ने कहा था कि ग्राम गणराज्य का विकास करेंगे. गांव में बालू घाट, वन उत्पाद का अधिकार ग्राम सभा को मिलेगा. साथ ही विकास कार्यों के लिए प्रखंड या अन्य सरकारी मुख्यालयों के चक्कर नहीं लगाने होंगे. उन्होंने मुख्यमंत्री से सवाल किया कि जब हमारे आदिवासी पूर्वज अंग्रेजों से नहीं डरे, तो वे किससे डर रहे हैं. सत्ता आती-जाती रहती है, लेकिन आदिवासी समाज की संस्कृति और अधिकार की रक्षा सर्वोपरि है. उन्होंने कहा कि बारिश के मौसम के बाद वे संताल परगना के हर गांव में जाकर लोकतंत्र के मूलमंत्र जनता से सीधा संवाद स्थापित करेंगे.
झारखंड की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
रघुवर दास से पूछे गये सवाल और उनके जवाब
प्रश्न : सुबोध कांत सहाय ने कहा कि रघुवर दास को छत्तीसगढ़ की चिंता करनी चाहिए, झारखंड की नहीं. इस पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
उत्तर : देखिए, जो सरकार के चाटुकार होते हैं, उनका काम ही होता है, सत्ता की तारीफ करना. भले ही वह असफल हों. ऐसे चाटुकारों के बयानों पर मैं कोई प्रतिक्रिया नहीं देता. असली मुद्दा है- पेसा कानून का, जिस पर सरकार पूरी तरह असंवेदनशील और भटकाव की नीति अपना रही है.
प्रश्न : वर्तमान सरकार कह रही है कि वह पेसा कानून को और मजबूत और सुदृढ़ रूप में लागू करना चाहती है. इसलिए समय लग रहा है?
उत्तर : अगर आपने वर्ष 2023 में प्रक्रिया पूरी कर ली थी और फाइल को विधि विभाग और एडवोकेट जनरल को भेज दिया था, तो फिर देरी क्यों? क्या आपने तभी नहीं माना कि सब प्रक्रिया पूरी हो चुकी है? सरकार पेसा कानून को लागू नहीं करना चाहती. उसे लटकाना और भटकाना चाहती है.
प्रश्न : वर्ष 2023 में सरकार ने क्रिश्चियन संस्थाओं से सुझाव लिये, लेकिन आदिवासी संस्थाओं को क्यों नहीं बुलाया गया?
उत्तर : साफ है कि सरकार की मंशा पारदर्शी नहीं है. उन्होंने ईसाई संस्थाओं के साथ बैठक की, लेकिन मानकी-मुंडा, माझी-परगना या अन्य पारंपरिक आदिवासी संस्थाओं को नहीं बुलाया. आखिर क्यों? क्या सरकार आदिवासी नेतृत्व को नजरअंदाज कर रही है?
प्रश्न : आपकी सरकार में भी पेसा कानून लागू नहीं हुआ, क्यों?
उत्तर : हमने वर्ष 2000 में ही सचिव स्तर की बैठक कर दिशा तय की थी, लेकिन कुछ संस्थाओं ने पंचायती राज नियमावली को अदालत में चुनौती दी. सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2017 में निर्णय दिया कि झारखंड में पांचवीं अनुसूची ही लागू होगी. उसके बाद ही रास्ता साफ हुआ. तब से ही हमने प्रक्रिया शुरू की.
प्रश्न : क्या वर्तमान सरकार हाईकोर्ट को भी गुमराह कर रही है?
उत्तर : जी हां. हाईकोर्ट ने दो महीने का समय दिया था, पेसा कानून लागू करने के लिए. आदेश का पालन नहीं हुआ. इसलिए कोर्ट ने अवमानना का नोटिस जारी किया. सरकार झूठे बहाने बना रही है. प्रक्रिया चल रही है कहकर अदालत को भ्रमित कर रही है.
प्रश्न : आपकी नजर में वो कौन-सी ताकतें हैं, जो पेसा कानून को लागू नहीं होने दे रही?
उत्तर : वही ताकतें, जो वर्ष 2010 से इसे अदालत में उलझा रहीं थीं. पेसा कानून से ग्रामसभा को ताकत मिलेगी, आदिवासी समाज आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक रूप से मजबूत होगा और धर्मांतरण जैसी गतिविधियों पर रोक लगेगी. स्वार्थी तत्वों को इससे दिक्कत है.
प्रश्न : झामुमो कह रहा है कि रघुवर दास की बातों को जनता नहीं सुनती. आप क्या कहेंगे?
उत्तर : सोशल मीडिया पर देख लीजिए, मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र बरहेट में भारी भीड़ उमड़ती है, जबकि वहां उनके कार्यकर्ता लोगों को चौपाल में जाने से रोकते हैं. मैं सामाजिक संस्था के बैनर पर चौपाल कर रहा हूं, राजनीतिक कार्यक्रम नहीं है. इसलिए उनके पेट में मरोड़ उठ रहा है.
प्रश्न : अगर पेसा लागू नहीं होता, तो बीजेपी का कोर्स ऑफ एक्शन क्या होगा?
उत्तर : व्यक्तिगत रूप से मैं आदिवासी समाज को जागरूक करने के लिए संताल परगना के हर गांव में चौपाल लगाऊंगा. मेरा लक्ष्य है ग्रामसभा, संस्कृति, परंपरा और अधिकार के प्रति लोगों को जागरूक करना. बरसात के बाद हर गांव में चौपाल लगेगा.
प्रश्न : सरना धर्म कोड पर आपका क्या मत है?
उत्तर : वर्ष 2013 में हमारे सांसद सुदर्शन भगत जी ने संसद में प्रश्न पूछा था. उस समय कांग्रेस की केंद्र और राज्य दोनों जगह सरकार थी. तब जनजातीय मामलों के मंत्री किशोर चंद्र देव ने जवाब में कहा था कि सरना धर्म कोड लागू करना अव्यावहारिक है. 700 जनजातियों का अलग-अलग धर्म है, इसलिए संभव नहीं है.
प्रश्न : क्या सरना धर्म का दस्तावेजीकरण कर उसको मान्यता देना संभव है?
उत्तर : पेसा कानून लागू होने पर ग्रामसभा को यह अधिकार मिल जायेगा. हर गांव में ग्रामसभा दस्तावेज बनायेगी कि कितने लोग सरना मानते हैं. इससे राज्य को आंकड़े मिलेंगे और राज्य सरकार इसे मान्यता दे सकती है, लेकिन सरकार की नीयत में खोट है.
प्रश्न : कांग्रेस और जेएमएम पेसा पर कार्यशाला कर रहे हैं, क्या यह भटकाव है?
उत्तर : गठबंधन की सरकार में सुझाव पहले ही लिये जा चुके हैं. फिर अब अलग-अलग कार्यशालाएं क्यों? कांग्रेस अलग, जेएमएम अलग, आरजेडी अलग. ये जनता को बेवकूफ बना रहे हैं. आप गठबंधन सरकार हैं, मिलकर कानून क्यों नहीं बना रहे?
प्रश्न : कहा जा रहा है कि पेसा ड्राफ्ट बनाने वाली अधिकारी निशा उरांव का ट्रांसफर दबाव में हुआ?
उत्तर : बिलकुल सच है. जो अधिकारी पेसा के पक्ष में थीं, उनका ट्रांसफर कर दिया गया. अब वो कह रही हैं कि वह सच्चाई उजागर करेंगी. इससे साफ है कि सरकार में बैठे कुछ लोग पेसा लागू नहीं करना चाहते. उन्हीं के दबाव में सब हो रहा है.
प्रश्न : क्या जनसंख्या संतुलन के साथ भी छेड़छाड़ हो रही है?
उत्तर : मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के विधानसभा क्षेत्र बरहेट में एसपीटी एक्ट का सरेआम उल्लंघन हो रहा है. मेन रोड के किनारे मदरसे, मस्जिदें, सामुदायिक भवन बन गये हैं. पूरे इलाके पर घुसपैठियों ने कब्जा कर लिया है. सामुदायिक भवन पर चोंगे लगे हुए हैं. जहां एसपीटी एक्ट लागू है, वहां गैर-आदिवासी को जमीन ट्रांसफर नहीं हो सकती. फिर ये अवैध निर्माण कैसे हो रहे हैं. ये आदिवासी समाज की जनसंख्या को रणनीति के तहत घटाने की साजिश है. घुसपैठिये और धर्मांतरण करने वाली ताकतें मिलकर आदिवासियों को कमजोर कर रही हैं. सरकार बाहरी लोगों की बात करके गुमराह करती है, जबकि असल खतरा घुसपैठ और अवैध धर्मांतरण से है. ये सब कुछ राज्य सरकार की मिलीभगत का परिणाम है. इसलिए मैंने साफ कहा है कि झारखंड में योगी जी के बुलडोजर की जरूरत है.
प्रश्न : क्या आदिवासी समाज अब जाग चुका है?
उत्तर : जी हां. अब आदिवासी सिर्फ वोटर नहीं रहा. वह अब अपने अधिकारों के लिए सड़कों पर उतर रहा है. और यही जागृति झारखंड में उलगुलान को जन्म देगी.
इसे भी पढ़ें
ACB Trap: धनबाद और लोहरदगा में रिश्वत लेते 2 सरकारी कर्मचारी गिरफ्तार
Ranchi News: एक ही रात बुढ़मू के जमगाई में 3-3 लोगों की मौत, गांव में पसरा सन्नाटा