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अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस आज: डिप्रेशन दूर करते हैं पहाड़, जानें कैसे करें इसका संरक्षण

दुनिया का लगभग 22 प्रतिशत हिस्सा पर्वतों से ढका है. साथ ही दुनिया की लगभग 13 प्रतिशत आबादी पहाड़ों पर ही रहती है. एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया को 60-80 प्रतिशत ताजा पीने लायक पानी पर्वतों से ही मिलता है.

(संजय प्रसाद/मो परवेज) जमशेदपुर: हमारा राज्य झारखंड पहाड़, नदियों और जंगलों के लिए जाना जाता है. यहां एक से बढ़कर एक सुंदर पहाड़, झरने व नदियां हैं, जो लोगों को न सिर्फ सुकून का अहसास कराती हैं, बल्कि प्रकृति से भी जोड़ती हैं. प्रकृति खुद को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए अपने संसाधनों का भंडारण भी स्वयं करती है. प्रकृति के संसाधनों का एक प्रमुख स्रोत है पहाड़, जिसकी बदौलत नदियों का कलरव, झरनों का संगीत हमारे जीवन में है. कल्पना करें कि अगर पृथ्वी पर पहाड़ न रहें, तो धरती से जीवन का अस्तित्व ही नष्ट हो जायेगा. दुनिया का लगभग 22 प्रतिशत हिस्सा पर्वतों से ढका है. साथ ही दुनिया की लगभग 13 प्रतिशत आबादी पहाड़ों पर ही रहती है. यूएनओ के एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया को 60-80 प्रतिशत ताजा पीने लायक पानी पर्वतों से ही मिलता है. यहां तक हमें मिलने वाले पोषक तत्व भी पहाड़ों से मिलते हैं. लेकिन, आज मनुष्य विकास की अंधी दौड़ में पहाड़ों को नष्ट कर स्वयं के लिए खतरे मोल ले रहा है. इसका नतीजा हमारे सामने ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण आदि के रूप में आ रहा है. आज 11 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस पर कोल्हान की कुछ प्रमुख पहाड़ों व उनके संरक्षण बारे में जानते हैं, जो हजारों वर्षों से एक बड़ी आबादी को जीवन यापन करने का न सिर्फ साधन, बल्कि भोजन का भी जरिया बने हुए हैं.

ऊंचे स्थानों को केवल पर्यटन के लिए परेशान नहीं किया जाना चाहिए : प्रेमलता अग्रवाल

पद्मश्री पर्वतारोही प्रेमलता अग्रवाल बताती हैं कि एडवेंचर स्पोर्ट्स की लोकप्रियता तेजी से बढ़ने के कारण पहाड़ों पर भीड़ बढ़ती जा रही है. पहाड़ निश्चित रूप से सुंदर सैरगाह और छुट्टी मनाने की जगह हैं, लेकिन ऊंचे स्थानों को केवल पर्यटन के लिए परेशान नहीं किया जाना चाहिए. पहाड़ हमारे पर्यावरण का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और उनकी पारिस्थितिकी तंत्र बहुत नाजुक होती है. अधिकतर पर्यटन व एडवेंचर स्पोर्ट्स पहाड़ों की प्राकृतिक सुंदरता और पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंच सकते हैं. अधिक भीड़भाड़ से वहां के वन्यजीवों और पौधों की प्रजातियों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. मिट्टी का कटाव और भूस्खलन जैसी समस्याएं भी बढ़ सकती हैं, जिससे पहाड़ों का संरचनात्मक संतुलन बिगड़ सकता है.

नदियों व झरनों के स्रोत हैं पहाड़

प्रेमलता अग्रवाल बताती हैं कि पहाड़ पर्यावरण का संतुलन बनाये रखते हैं और जलवायु नियंत्रण में मदद करते हैं. पहाड़ों पर कई प्रकार के वन्यजीव और पौधों की प्रजातियां पायी जाती हैं, जो हमारी जैवविविधता को समृद्ध करती हैं. पहाड़ों पर अक्सर सैलानी कूड़ा फेंक देते हैं, कचरे का सही ढंग से निपटारा करें और पहाड़ों पर प्लास्टिक के उपयोग को कम करें. पहाड़ी क्षेत्रों में स्थानीय लोगों की संस्कृति और परंपराओं का सम्मान करना और उनके साथ मिलकर संरक्षण का कार्य करना चाहिए.

प्राकृतिक संसाधनों का हो संवेदनशील उपयोग

प्रेमलता बताती हैं कि हमें पहाड़ों पर पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता और जागरूकता के साथ यात्रा करनी चाहिए और अपने कचरे का सही ढंग से निपटारा करना चाहिए. पहाड़ों की सुरक्षा और संरक्षण में हम सभी की भूमिका महत्वपूर्ण है, ताकि हम आने वाली पीढ़ियों के लिए उनकी सुंदरता को बरकरार रख सकें. जल, पहाड़ों पर वन्यजीव और खनिज संसाधनों का संवेदनशीलता से उपयोग करें और अधिक खनन से बचें. लोगों को पहाड़ों के महत्व के बारे में शिक्षित करें और उन्हें संरक्षण के लिए प्रेरित करें.

डिप्रेशन दूर करते हैं पहाड़

एडवेंजर स्पोर्ट्स में रुचि रखने वाली डिमना रोड की निवासी अनिशा बताती हैं कि वह पिछले पांच वर्षों से लगातार कोल्हान की विभिन्न पहाड़ियों पर प्रकृति से साक्षात्कार करने के लिए ट्रैकिंग के लिए जाती हैं. वह बताती हैं कि पहाड़ों पर चढ़ने के बाद दुनिया के सारे तनाव जैसे फुर्र से हो जाते हैं. लेकिन, एक बात का बेहद मलाल रहता है कि पर्यटन के लिए जाने वाले शहरी लोग पहाड़ों पर गंदगी फैलाते हैं. जिसके लिए वे न सिर्फ लोगों को जागरूक करती हैं, लेकिन ट्रैकिंग अभियान के दौरान रास्ते में मिलने वाले प्लास्टिक की बोतलों व पैकेट को भी साफ करती हैं. बेकार सामान को अलग से एक बैग में इकट्ठा कर सफाई करती हैं.

सैलानियों, पयर्टकों को सचेत होने की आवश्यकता

यंग एंड सोशल वेलफेयर फाउंडेशन के संस्थापक आदित्यपुर निवासी रणवीर पिछले छह वर्षों से एडवेंचर स्पोर्ट्स का आयोजन कर लोगों को ट्रैकिंग पर ले जाते हैं. वे बताते हैं कि पहाड़ों की सैर करने वाले सैलानियों, पयर्टकों को सचेत होने की आवश्यकता, ताकि इसे किसी तरह का नुकसान न पहुंचे. क्योंकि, पहाड़ न हमें शारीरिक, बल्कि मानसिक रूप से भी स्वस्थ रखते हैं. वे बताते हैं कि आज डिजिटल दुनिया में लगभग हर कोई परेशान है. तनाव में है. आज के युग में मनुष्य को खासकर शहरी लोगों को एक पल भी फुर्सत नहीं है. वे प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं. जिसका नतीजा डिप्रेशन व बीमारियां हैं. ऐसे में अगर हम खुद को प्रकृति से जोड़ते हैं, तो निश्चित रूप से इससे हमें लाभ होगा. क्योंकि, प्रकृति में ही हमारी सभी समस्याओं का निदान है. इसमें एक है-पहाड़ों व झरनों के बीच जाना. पहाड़ों व झरनों के पास खूबसूरत दृश्य न सिर्फ आपका मन मोह लेगी, बल्कि तनाव मुक्त भी करेगी. ट्रैकिंग आपके स्वास्थ्य को ठीक करेगा. पहाड़ों के झरने से मिलने वाला शुद्ध पानी आपको आरओ में नहीं मिलेगा.

हमारे आसपास के पहाड़

मुसाबनी : मुसाबनी क्षेत्र के राखा माइंस समेत इसके आसपास कई पहाड़ हैं. बताया जाता है कि इन पहाड़ों की उत्पत्ति ज्वाला मुखी विस्फोट से हुई है. हरियाली से भरे इन पहाड़ों की खूबसूरती लोगों को खूब आकर्षित करती है.

दलमा : कोल्हान में दलमा को पहाड़ों का राजा कहा जाता है. यह क्षेत्र मुख्य रूप से हाथियों का आश्रय स्थल है. साथ ही यहां कई औषधीय पौधों की भरमार है. वन विभाग इसके संरक्षण को लेकर विभिन्न उपाय कर रहा है.

डुमरिया : डुमरिया प्रखंड में रांगा पहाड़ है. इसका नाम लाल रंग के कारण हुआ है. स्थानीय बोली में लाल को रांगा कहा जाता है. इसी पहाड़ के पास है रांगमटिया गांव, जिसकी मिट्टी लाल है. यहां की मिट्टी घरों की रंगाई पुताई के काम कम आती है.

सबर और बिरहोर समाज : जंगल से शुरू होकर जंगल में खत्म हो जाती इनकी जिंदगी

पूर्वी सिंहभूम के घाटशिला अनुमंडल के उत्तर में पश्चिम बंगाल और दक्षिण में ओडिशा सीमा में पहाड़ों की लंबी शृंखला है. करीब 50 हजार से अधिक की आबादी वर्षों से पहाड़ों पर बसी है, जिनकी जिंदगी जंगल से शुरू होकर जंगल में ही खत्म हो जाती है. पहाड़ों के राजा माने जाते हैं विलुप्त होती आदिम जनजाति के सबर और बिरहोर समाज के लोग. सबरों की जब शादी होती तो वर पक्ष पहाड़ दिखाता है और कहता है- यही है हमारी संपत्ति. यह रिवाज आज भी है. कई गांव पहाड़ पर तो कई गांव पहाड़ की तलहटी पर हैं, उत्तर में एमजीएम, गालूडीह, घाटशिला, धालभूमगढ़, चाकुलिया थाना क्षेत्र में कई पहाड़ हैं, जहां बड़ी आबादी बसी है. दक्षिण में गुड़ाबांदा- डुमरिया थाना क्षेत्र में पहाड़ों की लंबी शृंखला में भी बड़ी आबादी बसी है. जंगल ही इनकी जीविका उपार्जन का मुख्य साधन है. पहाड़-जंगल से साल पत्ता, दतवन, लकड़ी, महुआ, चार बीज, पियाल पाका, भुरू पाका, केंदा पाका, केंदू पत्ता से मौसमी रोजगार करते हैं. जंगल- पहाड़ बचाओं आंदोलन से जुड़े घाटशिला के हेंदलजुड़ी निवासी दुलाल चंद्र हांसदा कहते हैं कि वर्षों से पहाड़ और साल जंगल बचा रहे हैं. पहाड़-जंगल है, तो जिंदगी है. बारिश है. हवा और बारिश है. पहाड़-जंगल नहीं होगा, तो जिंदगी नहीं बचेगी. यह सभी को सोचना चाहिए.

Prabhat Khabar Digital Desk
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