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धुमकुड़िया से आदिवासियों की संस्कृति को बचाया जा सकता है

धुमकुड़िया से आदिवासियों की संस्कृति को बचाया जा सकता है

लातेहार ़ सदर प्रखंड के आरागुंडी गांव के सरना स्थल धुमकुड़िया भवन में पारंपरिक धुमकुड़िया का संचालन शुरू किया गया. इसका उद्घाटन जिला परिषद सदस्य विनोद उरांव व उरांव समाज समन्वय समिति के स्टेट कन्वेनर झारखंड सदस्य रंथु उरांव व सेवानिवृत शिक्षक सकेंद्र उरांव ने संयुक्त रूप से फीता काटकर किया. मौके पर जिप सदस्य श्री उरांव ने कहा कि हमारा समाज आदिवासी बोली, भाषा, पारंपरिक रीति-रिवाज, अपनी सांस्कृतिक पहचान को धुमकुड़िया से ही बचाया जा सकता है. यह जिले के प्रत्येक गांव में धुमकुड़िया से संभव है. मोती उरांव ने कहा कि हमारे समाज का अपना शिक्षण संस्थान होना बहुत जरूरी है. जिससे हमारी संस्कृति का संरक्षण हो सकता है. सेवानिवृत शिक्षक श्री उरांव ने गांव वालों की प्रशंसा करते हुए सरकारी सेवा के बाद गांव में रहने की बात कही. इस समारोह में काफी संख्या में महिला, पुरुष, बच्चों ने भाग लिया. धुमकुड़िया में ऑनलाइन पढ़ाई के लिए सामुदायिक सहयाेग से टीवी उपलब्ध कराया गया. मौके पर जयराम उरांव, लखन उरांव, अनिल उरांव, संदीप उरांव, राजेश उरांव, प्रदीप उरांव, निर्मला उरांव, देवंती उरांव, सरिता उरांव, सुरेन्द्र उरांव, रोमन उरांव, सीटिया उरांव, हीरालाल उरांव, अशोक उरांव, शंकर उरांव, रविंद्र उरांव, मेघनाथ उरांव, धनु उरांव, बबलू उरांव व प्रतिभा उरांव समेत कई लोग उपस्थित थे.

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