सिमडेगा. सदर प्रखंड के तामड़ा गांव में इस वर्ष भी रथ यात्रा 27 जून को निकाली जायेगी. तामड़ा गांव की यह परंपरा ऐतिहासिक है. यहां पर रथ यात्रा निकालने की परंपरा वर्ष 1835 से निरंतर चली आ रही है. रथ यात्रा निकालने की परंपरा गांव के टभाडीह बस्ती से शुरू हुई थी. पूर्व में भगवान की प्रतिमाएं एक मिट्टी के मकान में स्थापित की गयी थी, जहां पूजा की जाती थी. उस समय के प्रमुख पुजारी कुंजल पुरी उर्फ भूषडू बाबा हुआ करते थे. इसके बाद चंद्रभान सेठ नामक श्रद्धालु के प्रयास से वहां एक त्रिमूर्ति मंदिर का निर्माण कराया गया. इसमें मां दुर्गा, लक्ष्मी-नारायण और भगवान जगन्नाथ की प्रतिमाएं स्थापित की गयी. उनके कार्यकाल में मेले का आयोजन छोटे स्तर पर होता था. लेकिन लोगों की आस्था व सहभागिता ने इसे साल दर साल भव्य स्वरूप दे दिया. बाद में रथयात्रा की परंपरा को गंगा दयाल पुरी और रामानंद पुरी ने आगे बढ़ाया. फिर गंगा दयाल पुरी के पुत्र काशीनाथ पुरी और रामानंद पुरी के पुत्र राजकिशोर पुरी ने इसे नयी ऊंचाइयों पर पहुंचाया. लगभग 25 वर्ष पूर्व चंद्रभान सेठ की अगुवाई में एक नया रथ बनवाया गया, जो आज भी भगवान की रथ यात्रा के लिए उपयोग में लाया जाता है. वर्तमान में रथ यात्रा की पूरी व्यवस्था काशीनाथ पुरी के पुत्र विजय पुरी व श्रीराम पुरी तथा राजकिशोर पुरी के पुत्र जितेंद्र पुरी के देखरेख में की जाती है. रथ यात्रा के दिन तामड़ा गांव में विशाल मेला का आयोजन किया गया है. मेले में विभिन्न प्रकार की दुकानें लगायी जाती हैं. मौसीबाड़ी में भगवान के विश्राम के दौरान नौ दिनों तक भंडारा और विशेष पूजा का आयोजन होता है, जिसमें श्रद्धालु प्रसाद ग्रहण करते हैं. तामड़ा की यह रथ यात्रा सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि स्थानीय सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न हिस्सा बन चुका है. यह परंपरा गांव की सामाजिक एकता, जनभागीदारी और आस्था का अद्भुत उदाहरण है, जो न केवल प्रखंड या जिले बल्कि पूरे जिले भर में तामड़ा गांव को विशिष्ट पहचान देती है.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है