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पेसा के मूल भावनाओं से छेड़छाड़ कर रही है सरकार : अध्यक्ष

पेसा कानून पर विचार गोष्ठी

सिमडेगा. विकास केंद्र सिमडेगा में आदिवासी सुरक्षा परिषद के तत्वावधान में पेसा कानून पर विचार गोष्ठी हुई. गोष्ठी में परिषद के अध्यक्ष ग्लैडसन डुंगडुंग ने कहा कि पेसा कानून 1996 की मूल भावना हमारे पुरखों की पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था को शासन की शक्ति प्रदान करना है. लेकिन झारखंड सरकार का पंचायती राज विभाग ने राज्य के अनुसूचित क्षेत्रों में पेसा कानून 1996 को लागू करने के लिए विगत तीन वर्षों के अंदर पेसा नियमावली का तीन ड्राफ्ट पेश किया. उक्त तीनों दस्तावेजों से स्पष्ट होता है कि सरकार हमारे पुरखों की पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था पर पंचायती राज अधिनियम की व्यवस्था थोपना चाहती है. हमारे पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका है. लेकिन सरकार कार्यपालिका को छीन कर पंचायत व्यवस्था थोपने की कोशिश में जुटी है. हमारी एकजुटता को तोड़ने के लिए सरना ईसाई व खड़िया मुंडा का खेल भी खेला जा रहा है. इसलिए हम आदिवासियों को सावधान होने की जरूरत है. हमारी एकजुटता से ही पेसा कानून लागू होगा. कहा कि आदिवासी समाज को एक बार फिर से उलगुलान कि दिशा में कदम बढ़ाने की जरूरत है. ठेठईटांगर पश्चिमी जिप सदस्य अजय एक्का ने कहा कि पंचायत राज अधिनियम आदिवासी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त नहीं है. इसलिए हमारे पुरखों ने पेसा 1996 अधिनियम बनाया लेकिन झारखंड सरकार बड़ी चालाकी से राज्य के अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायत राज व्यवस्था थोपना चाहती है. सरकार पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था को शक्ति प्रदान करने से डरती है. इंडिया गठबंधन के नेताओं ने अपने चुनावी घोषणापत्र में पेसा 1996 लागू करने का वादा किया था. लेकिन सरकार में बनते अपने वादे से मुकर गये. कार्यक्रम में रेजिना टोप्पो, मेरी क्लाउडिया सोरेंग, सुषमा बिरहुली, अनूप लकड़ा, बेनेदिक्त लकड़ा ने भी अपने विचार व्यक्त किये.

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Prabhat Khabar News Desk
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