बानो. बानो प्रखंड अंतर्गत स्थित केतुंगाधाम शिव मंदिर आस्था व श्रद्धा का प्रतीक बन चुका है. सावन माह में यहां भक्तों का तांता लगा रहता है. यह मंदिर प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर पहाड़ियों और जंगलों के बीच स्थित है, जो इसे और भी रमणीय बनाता है. पुरातत्व विभाग द्वारा पंजीकृत यह मंदिर पौराणिक महत्व रखता है. इसकी स्थापना श्रीगंकेतु राजा के कार्यकाल में की गयी थी. कहा जाता है कि मंदिर का नाम केतुंगाधाम भी उन्हीं के नाम पर रखा गया है. बानो प्रखंड से महज 10 किमी दूर मालगो और देव नदी के संगम स्थल पर स्थित यह मंदिर बूढ़ा गोरक्षा शिव मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. यहां सालभर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है, लेकिन सावन माह में इसकी महत्ता और बढ़ जाती है. इस पवित्र अवसर पर श्रद्धालु विशेष रूप से पूजा-अर्चना, जलाभिषेक और दर्शन के लिए पहुंचते हैं. साथ ही महीने भर चलने वाले मेले का आनंद भी उठाते हैं. जिला प्रशासन की ओर से मंदिर को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के प्रयास किया जा रहा है. इसके तहत मंदिर से नदी तट तक शेड, शौचालय और मुख्य द्वार का निर्माण कराया गया है. इस बार सावन को लेकर मंदिर प्रबंधन विशेष तैयारी में जुटा है. शीघ्र दर्शन, जलाभिषेक व पूजा-अर्चना के लिए पुरुष व महिला भक्तों के लिए अलग-अलग व्यवस्थाएं की गयी हैं. इतिहास की बात करें, तो बताया जाता है कि राजा अशोक ने कलिंग युद्ध के दौरान लौटते समय यहां विश्राम किया था और एक बौद्ध मंदिर की स्थापना की थी. उसकी जीर्ण-शीर्ण मूर्तियां आज भी रानीटांड़ स्थित खेतों में मौजूद हैं. इसके अलावा मान्यता है कि भगवान राम, लक्ष्मण और सीता वनवास के दौरान इस मार्ग से रामरेखा गये थे. देव नदी के चट्टानों पर आज भी उनके पदचिह्न देखे जा सकते हैं. केतुंगाधाम मंदिर तक पहुंचने के लिए कोलेबिरा प्रखंड के लचरागढ़ व बानो प्रखंड से सोय कोनसोदे होते हुए सड़क मार्ग से जाया जा सकता है. मंदिर लचरागढ़ से पांच किमी और बानो प्रखंड मुख्यालय से लगभग 10 किमी दूर है. बाहर से आनेवाले श्रद्धालुओं के लिए ठहरने की नि:शुल्क व्यवस्था भी की गयी है. भक्तों की सेवा में समर्पित यह स्थल श्रद्धा, इतिहास और प्रकृति का अद्भुत संगम है.
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