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बाढ़ त्रासदी पर मंत्री संजय निषाद का अजीबोगरीब बयान, “गंगा मैया पांव धोने आती हैं, गंगा पुत्र सीधे स्वर्ग जाते हैं”

UP Latest News: लगातार बारिश से यूपी के कई जिलों में बाढ़ से हालात बिगड़े हैं. दौरे पर पहुंचे मंत्री संजय निषाद ने कहा- गंगा मैया पांव धोने आती हैं, गंगा पुत्र सीधे स्वर्ग जाते हैं. इस बयान पर विपक्ष और सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आईं.

UP Latest News: उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ दिनों से लगातार हो रही मूसलाधार बारिश ने कई जिलों में बाढ़ जैसे हालात पैदा कर दिए हैं. नदियां उफान पर हैं और ग्रामीण इलाकों में पानी भर जाने से आम जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है. हालात की गंभीरता को देखते हुए योगी सरकार ने बाढ़ राहत के लिए ‘टीम-11’ का गठन किया है, जिसमें मंत्रियों को जिलों की जिम्मेदारी सौंपी गई है.

टीम-11 के सदस्य संजय निषाद का विवादित बयान

निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और योगी सरकार में मंत्री डॉ. संजय निषाद को ‘टीम-11’ में कानपुर देहात की जिम्मेदारी सौंपी गई है. मंगलवार को बाढ़ प्रभावित इलाकों के दौरे पर पहुंचे संजय निषाद ने ऐसा बयान दे दिया, जिसने सोशल मीडिया पर बवाल मचा दिया. उन्होंने ग्रामीणों से कहा – “गंगा मैया, गंगा पुत्रों के पांव धुलने आती हैं. गंगा के पुत्र सीधे स्वर्ग जाते हैं. विरोधी लोग आपको उल्टा सीधा पढ़ाते हैं. सौभाग्य है सबका कि गंगा जी आ जाती हैं.”

बयान का वीडियो वायरल, सोशल मीडिया पर घिरी सरकार

इस बयान का एक वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है. लोग इस बयान को अमानवीय और असंवेदनशील बता रहे हैं. विपक्षी दलों और आम जनता ने मंत्री के इस बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी है.

कांग्रेस का हमला: “जनता को मूर्ख समझते हैं भाजपाई”

यूपी कांग्रेस ने भी इस बयान को लेकर योगी सरकार को घेरा है. कांग्रेस ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर वीडियो पोस्ट करते हुए लिखा –
“मंत्री खुद लखनऊ के पॉश इलाके में रहते हैं, जहां गंगा तो क्या नाली भी नहीं बहती. क्या इसका मतलब ये निकाला जाए कि मंत्री जी सीधे… वहां जाएंगे?” कांग्रेस ने आगे लिखा – “जनता अब इनकी धूर्तता को पहचान चुकी है और समय आने पर ब्याज समेत हिसाब चुकता करेगी.”

कथनी और करनी में फर्क?

इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या सरकार के मंत्री वास्तव में जनता की तकलीफों को समझते हैं या सिर्फ जिम्मेदारी निभाने की औपचारिकता कर रहे हैं? बाढ़ जैसे गंभीर मसले पर मजाकिया और धार्मिक लफ्जों में बात करना क्या संवेदनहीनता नहीं है?

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