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बर्नपुर में ठेका श्रमिकों का ठेकेदार के खिलाफ विरोध

श्रमिकों ने आरोप लगाया कि ठेकेदार उनसे 26 दिन काम लेने के बावजूद केवल 22 दिन का वेतन देने की बात कर रहा है.

कम वेतन और पैसों की वसूली को लेकर श्रमिकों में आक्रोश एसोसिएशन ने जताया समर्थन बर्नपुर. शुक्रवार को सेल आइएसपी बर्नपुर के टनल गेट के सामने उस वक्त तनाव की स्थिति बन गई, जब बोकारो के ठेकेदार जगत इंटरप्राइज के खिलाफ उसी के श्रमिकों ने विरोध प्रदर्शन किया. श्रमिकों ने आरोप लगाया कि ठेकेदार उनसे 26 दिन काम लेने के बावजूद केवल 22 दिन का वेतन देने की बात कर रहा है. साथ ही प्रत्येक श्रमिक से 5,000 रुपये की जबरन मांग की जा रही है. ठेकेदार का तर्क है कि उसने कम रेट पर ठेका लिया है, इसलिए वेतन में कटौती करनी पड़ेगी.

श्रमिकों के पक्ष में उतरी कांट्रेक्टर एसोसिएशन

श्रमिकों के इस विरोध को बर्नपुर कांट्रेक्टर एसोसिएशन (बीसीए) का भी समर्थन मिला. एसोसिएशन के अध्यक्ष सैयद इम्तियाज ने कहा कि मॉडर्नाइजेशन कार्य में कुछ बाहरी ठेकेदार कम दर पर ठेका लेकर श्रमिकों का शोषण कर रहे हैं, जो पूरी तरह अस्वीकार्य है. उन्होंने कहा कि एसोसिएशन हर हाल में श्रमिकों के साथ खड़ा रहेगा. बीसीए के चेयरमैन प्रदीप कुमार ठाकुर ने भी आश्वस्त किया कि श्रमिकों के हितों की रक्षा की जायेगी और भविष्य में किसी प्रकार की परेशानी न हो, इसके लिए एसोसिएशन तत्पर है. उन्होंने यह भी कहा कि जल्द ही इस मुद्दे पर सेल आइएसपी प्रबंधन और ट्रेड यूनियनों से बातचीत की जायेगी ताकि कोई स्थायी समाधान निकल सके.

श्रमिकों में आक्रोश और नियमों का उल्लंघन

श्रमिकों का कहना है कि सेल के नियमानुसार ठेका श्रमिकों का वेतन सीधे उनके बैंक खातों में जमा किया जाना चाहिए, लेकिन ठेकेदार की मनमानी से वे नाराज हैं. श्रमिकों में इस बात को लेकर भारी रोष है कि उन्हें जबरन पैसे देने के लिए मजबूर किया जा रहा है.

टनल गेट पर साझा किया गया विरोध का स्वर

इस मुद्दे को लेकर बर्नपुर कांट्रेक्टर एसोसिएशन के प्रतिनिधियों ने टनल गेट के सामने पत्रकारों से बातचीत की. मौके पर वकील प्रसाद, मदन जायसवाल, मुन्ना यादव, तापस बनर्जी, पुर्णेंदु चौधरी, सुकुमार चक्रवर्ती, नवल अग्रवाल, सैयद अजहर और बैजू ठाकुर समेत कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे. अब सभी की निगाहें सेल आइएसपी प्रबंधन और ट्रेड यूनियनों की अगली कार्रवाई पर टिकी हैं. इस घटना ने एक बार फिर ठेका श्रमिकों के शोषण और नियमन की पारदर्शिता पर सवाल खड़ा कर दिया है.

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